गोंडा : मुजेहना के अचलनगर में रहने वाले किसान दिलीप वर्मा को फलों की खेती ने करोड़पति बना दिया। कभी बैंक में नौकरी करने वाले दिलीप आज प्रगतिशील खेती बने हैं। गांव में ही वह 21 एकड़ जमीन लीज पर लेकर पपीते व केला की खेती कर रहे हैं। सहफसल के रूप में तरबूज व टमाटर की खेती कर रहे हैं। औसतन दिलीप को फलों की खेती से एक करोड़ रुपये की कमाई होती है। यहां तैयार पपीता बलरामपुर के व्यापारी आकर खुद ले जाते हैं।
कामयाबी कहानी, दिलीप की जुबानी
मुजेहना के अचलनगर में रहने वाले दिलीप वर्मा एक मध्यम वर्गीय परिवार से हैं। पढ़ाई के बाद उन्होंने 2009-10 में चीनी मिल में तौल लिपिक की नौकरी की थी। दो साल बाद उन्होंने यह नौकरी छोड़कर एचडीएफसी बैंक की नौकरी कर ली। दिलीप के मुताबिक यहां हरमाह 25 हजार रुपये मिलते थे। घरेलू खर्च तो चल जाता था, लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं थे। बैंक होने की वजह से यहां किसानों को आना जाना लगा रहता था। वर्ष 2015 में एक किसान ने फलों की खेती के बारे में जानकारी दी थी। घर पर चर्चा के बाद उन्होंने बैंक की नौकरी छोड़ दी। गांव से ही कुछ दूर सिरिया नौसा गांव में 21 एकड़ जमीन लीज पर ले ली। यहां 17 एकड़ में केले की खेती शुरू की। जबकि अप्रैल 2016 में चार एकड़ में पपीते की रोपाई की थी। रोपाई के लिए ताइवान 487 नामक प्रजाति के पौधे लखनऊ की नर्सरी से लाया गया था। दिलीप के मुताबिक हरसाल 60-65 लाख रुपये का केला बिक जाता है। जबकि पपीते से 28-30 लाख रुपये की कमाई होती है। केले के खेत में टमाटर व पपीते के खेत में तरबूज सहफसल के रूप में ले रहे हैं। दिलीप के मुताबिक हरसाल औसतन एक करोड़ रुपये के फल बिकते हैं, जिसमें 25 से 30 लाख रुपये खर्च आता है। दिलीप के लिए खेती से ज्यादा फायदेमंद कोई काम नहीं है।
एक बीघे में कितनी पैदावार
– एक बीघे खेत में पपीते के 220 पौधे की रोपाई औसतन होती है। ये पौधे दो वर्ष तक चलते हैं। एक पौधे में हरसाल से 40 किलोग्राम फल निकलता है। सालभर में 88 ¨क्वटल पपीता तैयार होता है। जबकि एक बीघे में केले के 260 पौधे की रोपाई होती है। एक पौधे में 25-30 किलो केला निकलता है। एक बीघे में उत्पादन 75 ¨क्वटल होता है जिसमें 18-20 हजार रुपये का खर्च आता है।
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