क्यों हो रही है चुनावी हिंसा बंगाल में ही ,जानें-क्या कहा राजनीतिक पंडियों ने

केंद्रीय बलों की मौजूदगी के बावजूद बंगाल में हिंसा की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। सरेआम बूथ लूट से लेकर मतदाताओं तक को धमकियां दी जा रही हैं। चरण दर चरण हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है और अब तक कुल चार से पांच लोगों की जानें जा चुकी है। इन सब के बीच राज्य की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस आरोपों के घेरे में है। वहीं, चुनाव आयोग के विशेष पर्यवेक्षक अजय वी नायक ने बंगाल के मौजूदा हालात की तुलना 15 साल पहले के बिहार से करते हुए कहा कि बंगाल के लोगों का राज्य पुलिस पर भरोसा नहीं रह गया है। इसलिए सभी मतदान केंद्रों पर केंद्रीय बलों की तैनाती की उनकी मांग बढ़ गई है।

 

 

पिछले तीन चरणों में मतदान के दौरान हिंसा की घटनाएं पर संज्ञान लेते हुए निर्वाचन आयोग ने भले ही चौथे चरण में कुल 92 फीसद मतदान केंद्रों पर केंद्रीय बलों की तैनाती की हो। लेकिन हकीकत यह है कि चौथे चरण में मतदान के दौरान कई संसदीय क्षेत्रों में तृणमूल समर्थकों पर केंद्रीय बलों के ऊपर हमला करने का आरोप लगा। लेकिन राज्य की ममता सरकार ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए लगे हाथ इन हिंसाओं के लिए भाजपा, माकपा और कांग्रेस को कुसूरवार ठहरा दिया।

वरिष्ठ पत्रकार व समाजसेवी रथीन्द्र मोहन बंद्योपाध्याय की मानें तो बंगाल में हिंसा की राजनीति वामो के जमाने से ही चली आ रही है, लेकिन ममता राज में चुनावी हिंसा की घटनाएं तेजी से बढ़ी है। उन्होंने कहा कि खुद के अस्तित्व को बचाने रखने के लिए यहां की सत्ताधारी पार्टियां अक्सर हिंसा को बढ़ावा देती रही हैं, ताकि मतदाता उनके खौफ के भंवर फंसे रहे हैं। वहीं, उन्होंने कहा कि हकीकत यह है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बिना अनुमति राज्य में एक पत्ता नहीं हिल सकता है, लेकिन अपनी चुनावी सभाओं में ममता राज्य में कानून का शासन होने की बात करती हैं। ममता राज में ऐसे कई मौके आए, जब सरेआम कानून का माखौल उड़ाया गया और राज्य पुलिस तमाशबीन बनी रही।

इन सब के बावजूद भी अगर मोदी और भाजपा का क्रेज यहां बढ़ा है तो ममता की बौखलाहट भी लाजिमी है। जिसका नतीजा है कि राज्य में चुनाव के समय भाजपा समेत अन्य सियासी दलों के कार्यकर्ताओं पर हमले किए जा रहे हैं। अक्सर अपनी चुनावी सभाओं में मुख्यमंत्री 42 में से 42 सीटों पर जीत दर्ज करने का दावा तो करती हैं, लेकिन हकीकत यह है कि उन्हें भी भाजपा का भय सताने लगा है। इधर, राज्य में पसरे खौफ के आलम को इसी से समझा जा सकता है कि बंगाल में ममता और उनकी सरकार के अलावा अन्य किसी दल के नेता की तारीफ भी उनके पार्टी समर्थकों व नेताओं को नागवार गुजर रहा है और तारीफ करने वाले शख्स की पिटाई की खबरें अब आम हो चली है।

सेठ सूरजमल जालान कॉलेज के सेवानिवृत प्रोफेसर डॉ. गोरखनाथ ठाकुर ने कहा कि साल 2011 में वामो के कुशासन से मुक्ति के लिए राज्य की जनता ने ममता को मौका दिया तो उन्हें मां, माटी और मानुष के नारे के बीच मजबूत लोकतंत्र की उम्मीद थी। लेकिन आज राज्य की जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है। सियासी हिंसा की बात की जाए तो ममता सरकार ने इस क्षेत्र में कम्युनिस्टों को भी पीछे छोड़ दिया है।

मौजूदा चार चरणोंं के मतदान के दौरान जो परिदृश्य देखने को मिले वो यह साबित करने के लिए काफी हैं कि यहां जनता के अधिकार की नहीं, बल्कि जोर आजमाइश की राजनीति हो रही है। वहीं, उन्होंने पंचायत चुनाव व विधानसभा उपचुनावों का जिक्र करते हुए कहा कि जिस तरह से इन चुनावों में आम लोगों व विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं का खून बहाया गया वो राज्य के असल स्वभाव के विपरीत है। विश्व में बंगाल को शांति व शिक्षा के लिए जाना जाता है न कि खूनी राजनीति के लिए।

बंगाल में राजनीतिक हिंसा का इतिहास

बंगाल में राजनीतिक हिंसा के इतिहास पर गौर करे तो पता चलेगा कि हिंसा की घटनाएं यहां पहले भी होती रही है और आज भी जारी है। राज्य में रक्तरंजित राजनीति का अपना एक लंबा इतिहास रहा है और इसकी गवाही नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े देते हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2016 में बंगाल में सियासी वजहों से हिंसा की कुल 91 घटनाएं घटी और 205 लोग हिंसा के शिकार हुए।

इससे पहले यानी साल 2015 में कुल 131 घटनाएं दर्ज की गई थीं और इसमें 184 लोग शिकार बने थे। 2013 में सियासी झड़पों में कुल 26 लोगों की जानें गई, जो किसी भी राज्य से अधिक थी। साल 1997 में वाम सरकार में गृह मंत्री रहे बुद्धदेब भट्टाचार्य ने विधानसभा में जानकारी दी थी कि साल 1977 से 1996 तक बंगाल में 28 हजार लोग सियासी हिंसा में मारे गये थे। ये आंकड़े सियासी हिंसा की भयावह तस्वीर पेश करते हैं।

पंचायत चुनाव के दौरान हिंसा

29 मई, 2018 को पुरुलिया के जंगल में 18 साल के त्रिलोचन महतो की हत्या कर शव को एक पेड़ से लटका दिया गया था। दलित समुदाय से आने वाले त्रिलोचन के पिता हरिराम महतो उर्फ पानो महतो की भाजपा में सक्रियता की वजह से उनके बेटे की जान चली गई। पंचायत चुनाव में बलरामपुर ब्लॉक की सभी सात सीटों पर भाजपा को मिली तो दूसरी ओर त्रिलोचन का जंगल में झूलता शव और उसके टी-शर्ट लगा वो पोस्टर जिस पर साफ लिखा था, ‘ भाजपा के लिए काम करने वालों का यही अंजाम होगा। पिछले साल अप्रैल माह में दक्षिण 24 परगना जिले में तृणमूल कार्यकर्ताओं पर भाजपा की महिला प्रत्याशी के साथ बदसलूकी और सरेआम उसकी पिटाई का भी आरोप लगा।

जिंदा जला दिए गए दो वाम कार्यकर्ता

पंचायत चुनाव के दौरान बंगाल के रायगंज संसदीय क्षेत्र में तैनात चुनाव अधिकारी राजकुमार रॉय की हत्या इसलिए कर दी गई कि उसने निष्पक्ष चुनाव करवाने की कोशिश की तो वहीं दूसरी ओर उत्तर 24 परगना में पंचायत चुनाव के दौरान माकपा के एक कार्यकर्ता के घर में आग लगा दी गई। उक्त घटना में कार्यकर्ता और उसकी पत्नी मारे गए। जिसके बाद माकपा की ओर से आरोप लगाया गया कि राज्य की सत्ताधारी पार्टी के इशारे पर माकपा कर्मियों की हत्या की जा रही है।

बंगाल में असंतुलित आबादी

राज्य में 1951 की जनसंख्या के हिसाब से 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी कमी आई है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की हिंदू आबादी 0.7 फीसद कम हुई है तो वहीं सिर्फ बंगाल में ही हिंदुओं की आबादी में 1.94 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है। राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों की आबादी में जहां 0.8 फीसद की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है, वहीं बंगाल में इनकी आबादी 1.77 फीसद की दर से बढ़ी है, जो राष्ट्रीय स्तर से दोगुना है।

बंगाल में हिंसा की राजनीति पर आरोप-प्रत्यारोप

जैसे को तैसा

राजनीति में हिंसा का कोई स्थान नहीं होता, लेकिन पश्चिम बंगाल में हिंसा की राजनीति की जा रही है। ऐसे में कार्यकर्ताओं के अहिंसक बनकर बैठने से काम नहीं चलेगा और जो जिस भाषा को समझता है, उसे उसी भाषा में जवाब देने का हमें अधिकार है। हमारे शांति पहल से कुछ नहीं होने वाला है क्योंकि यहां पुलिस भी ममता के इशारों पर नाचती है।

– दिलीप घोष, अध्यक्ष, प्रदेश भाजपा। 

खौफ में हैं मतदाता

जिस तरह से पिछले चार चरणों में मतदान के दौरान हिंसा के दृश्य सामने आए हैं वो यह साबित करने के लिए काफी है कि राज्य की ममता सरकार लोगों की जान लेकर सियासी सत्ता चाहती है। लेकिन हम भी खामोश नहीं रहेंगे। भाजपा और तृणमूल मिलकर राज्य में खौफ फैलाने का काम कर रही है।

-सुजन चक्रवर्ती, माकपा विधायक दल के नेता। 

पीएम पद के लिए लालायित हैं ममता

तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी का एकमात्र उद्देश्य भारत का प्रधानमंत्री बनना है। वह प्रधानमंत्री पद के लिए लालायित हैं। उनमें पूर्व पीएम देवेगौड़ा और गुजराल लक्षण दिखता है। ऐसे में चुनाव जीतने व राज्य से ज्यादा से ज्यादा सीट पर कब्जा करने के लिए वो हिंसा का सहारा ले रही है। लेकिन जनता अबकी उनका साथ नहीं देगी। क्योंकि वे लूट और खौफ की राजनीति से आजिज आ चुके हैं।

अधीर रंजन चौधरी, वरिष्ठ कांग्रेस नेता व निवर्तमान सांसद। 

जनता जवाब देगी

माकपा और भाजपा हमेशा से ही ङ्क्षहसा की सियासत पर जोर देते रहे हैं और राज्य में ङ्क्षहसा के लिए ये दोनों पार्टियां ही जिम्मेदार हैं। उनकी चुनावी हताशा सबके सामने है। पूरे राज्य में तृणमूल कार्यकर्ताओं पर हमला करने के लिए वे माओवादियों का सहारा ले रहे हैं। राज्य की जनता सब देख रही है और वह भी उन्हें जवाब देगी।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com