खाना-पीना इंसान के जीवन की मूलभूत ज़रूरतों में से एक है। इंसान कपड़ों के बिना जीवित रह सकता है लेकिन बिना खाने के जीवित रह पाना असम्भव है। पहले लोग जीवित रहने के लिए खाना खाते थे, लेकिन अब लोग जीवित रहने के लिए कम, अपने जीभ का स्वाद बदलने के लिए ज़्यादा खाना खाते हैं। आजकल लोग तरह-तरह के पकवानों का आनंद लेने लगे हैं। कई बार तो लोग घर के बने खाने से बोर होकर जीभ का स्वाद बदलने के लिए रेस्टोरेंट के स्वादिष्ट खाने को खाने के लिए चले जाते हैं।
सेहत की दृष्टि से होता है घर का खाना अच्छा:
बाहर खाना खाने से पेट तो भरता ही है, साथ में व्यक्ति अपने परिवार वालों के साथ एकांत में कुछ समय भी बिता लेता है। इसके साथ ही कुछ ऐसी चीज़ों का स्वाद भी चख लेता है, जिसको वह पहले कभी नहीं खाया होता है। बाहर का चाहे जितना भी कोई खाना खा ले, लेकिन घर पर बने हुए शुद्ध खाने की बात ही अलग होती है। घर का बना हुआ खाना सेहत की दृष्टि से भी काफ़ी अच्छा होता है। घर के बने हुए पकवानों के आगे सबकुछ फ़ेल हो जाता है।
थाली में परोसी जाती हैं दो या चार रोटियाँ:
भारत में सदियों से परम्परा रही है कि जब भी किसी को खाना दिया जाता है तो उसे अच्छे से थाली या प्लेट में सजाकर दिया जाता है। एक थाली में कई तरह के पकवान होते हैं और साथ में कुछ रोटियाँ भी होती हैं। अक्सर आपने एक बात देखी होगी कि महिलाएँ जब भी थाली में खाना लेकर आती हैं तो साथ में दो रोटियाँ ही होती हैं। अब सवाल उठता है कि थाली में केवल दो या चार रोटियाँ ही क्यों परोसी जाती हैं? तीन रोटियाँ एक साथ क्यों नहीं परोसी जाती हैं। यक़ीनन इसके पीछे के कारण के बारे में कम ही लोगों को पता होगा।
धर्म की मान्यता के अनुसार थाली में तीन रोटियाँ परोसना अशुभ होता है
आपकी जानकारी के लिए बता दें थाली में इस तरह से खाना परोसने की परम्परा आज से नहीं बल्कि प्राचीनकाल से चली आ रही है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार थाली में तीन रोटियाँ परोसना अशुभ होता है। हिंदू धर्म में 3 अंक को अशुभ अंक माना जाता है। इसी वजह से किसी भी शुभ कार्य में तीन लोगों को एक साथ नहीं बैठाया जाता है। तीन तारीख़ को हिंदू धर्म में कोई शुभ कार्य भी नहीं किया जाता है।