हिंसा में सुलगता सहारनपुर योगी सरकार की कारगुजारी पर बड़ा सवालिया निशान साबित हो रहा है. हिंसा का सबसे ज्यादा शिकार इलाके के किसान और मजदूर बने हैं. जिस तरह से जातीय हमलों को अंजाम दिया जा रहा है, उससे लग रहा है कि ये सोची-समझी साजिश हो सकती है.
गुरिल्ला स्टाइल हमलों से बढ़ा शक
अब तक हिंसा की वारदातों में हमलावर अचानक प्रकट होते हैं, खून-खराबा करते हैं और कुछ इस तरह लापता होते हैं कि पुलिस प्रशासन को भनक तक नहीं लग पाती. जिन इलाकों में ये गुरिल्ला स्टाइल हमले हुए हैं वहां किसी भी तरह के जातीय मनमुटाव का इतिहास नहीं रहा है. मसलन आसनवाली गांव में प्रदीप चौहान नाम के शख्स को गोली मारने के बाद उसके घर मातमपुर्सी करने कई दलित भी पहुंचे थे. ज्यादातर जातीय हमलों को ऐसी जगह अंजाम दिया गया है जहां पुलिस की मौजूदगी कम है और सनसनी फैलने की आशंका ज्यादा.
क्या कह रहा है प्रशासन?
उत्तर प्रदेश के गृह सचिव मणि प्रसाद मिश्र मानते हैं कि ये संगठित हमलों की सुनियोजित साजिश है. मिश्र के मुताबिक पुलिस को इस बाबत काफी सुराग और सबूत मिले हैं. इस सिलसिले में ज्यादा जानकारियां जुटाई जा रही हैं. मिश्र का दावा है कि जल्द ही पूरी साजिश और उसकी पीछे की ताकतें बेनकाब होंगी. गृह सचिव ने संकेत दिए कि सरकार हिंसा की जांच सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसी को सौंपने के मूड में नहीं है. प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (लॉ एंड ऑर्डर) आदित्य मिश्रा भी गृह सचिव के सुर में सुर मिलाते हैं. उनका कहना है कि हिंसा के बाद गिरफ्तार करीब 50 लोगों ने इस बारे में कई अहम जानकारियां दी हैं. आरोपियों की कॉल डिटेल्स खंगाली जा रही हैं और सच जल्द ही सामने आएगा.
स्थानीय नेताओं ने भी जताई आशंका
सहारनपुर के सांसद राघव लखनपाल ने भी सहारनपुर हिंसा में गुरिल्ला तकनीक की आशंका से इनकार नहीं किया. उन्हें उम्मीद है कि निष्पक्ष जांच में सच सामने आएगा.