केदारनाथ, बद्रीनाथ, वैष्णों देवी कई आस्था पीठ भारत में पौराणिक काल से मौजूद हैं. लेकिन क्या आपने ऐसे मन्दिर के बारे में सुना है, जो दो वक्त समुन्द्र में डूब अपना जल-अभिषेक करवाता है ? जी हाँ, आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक अनोखा सच, उस दिव्य मन्दिर का जो लहरों में गायब हो जाता है और इसके पीछे की वो खास कहानी जो आपको इस मन्दिर के दर्शन के लिए मजबूर कर देगी.अभी-अभी: पाकिस्तान से हार के बाद सदमे में आकर इस मशहूर क्रिकेटर ने लगाई फांसी, क्रिकेट जगत संग पुरे देश में शौक की लहर..
दरअसल इस मन्दिर की खोज 150 साल पहले हुई थी और इस मन्दिर के पीछे की कहानी काफी अलग है. प्राचीन काल में ताड़कासुर नामक दैत्य ने शिवजी की घोर तपस्या करके यह वरदान पा लिया था की उसका वध 6 दिन का शिव पुत्र ही कर सके. वरदान मिलने के बाद ताड़कासुर हर तरफ अपना आतंक मचाने लगा.
देवी-देवता और ऋषिमुनि शिव के पास पहुंचे तो शिव की शक्ति को श्वेत पर्वत के पिंड से कार्तिके का जन्म हुआ, जिसके चार आँखें और 6 सर थे. इन्होने ताड़कासुर का वध करके उनके आतंक को खत्म किया
लेकिन जब उन्हें यह पता चला कि ताड़कासुर उनके पिता शिवजी का परम भक्त था तो उन्हें बहुत दुःख हुआ. भगवान विष्णु ने उन्हें उसके वध की जगह (महासागर संगम तीर्थ ) पर विश्व नदन स्थल की स्थापना की, जिसे कार्तिकेय ने ही पूरा किया. तब से यह मन्दिर विश्व विख्यात हो गया है और आगे चल कर स्तंभेश्वर तीर्थ कहलाई.
गुजरात में वडोदरा से 85 किमी दूर स्थित जंबूसर तहसील के कावी-कंबोई गाँव में यह मंदिर स्थित है. यह अरब सागर के बीच कैम्बे तट पर स्थित है.