महर्षि वेदव्यास के कहने पर पांडवों ने द्रौपदी के साथ सारा राज-पाट त्याग कर सशरीर स्वर्ग जाना के निश्चय कर लिया था। इसके साथ ही युधिष्ठिर ने युयुत्सु के कंधों पर पूरे राज्य का देखभाल कर भार सौंप दिया और परीक्षित का राज्याभिषेक कर उसे राजा के गद्दी पर बिठा दिया। इन सबके बाद पांचों पांडव द्रौपदी और एक कुत्ते के संग स्वर्ग की यात्रा पर निकल पड़े।
यात्रा करते-करते पांडव हिमालय तक पहुंच गए। हिमालय लांघकर पांडव आगे बढ़े तो उन्हें बालू का समुद्र दिखाई पड़ा। इसके बाद उन्होंने सुमेरु पर्वत के दर्शन किए। पांचों पांडव, द्रौपदी और वह कुत्ता तेजी से आगे चलने लगे। तभी अचानक द्रौपदी लड़ खड़ाकर खाई में गिर पड़ीं। उसके बाद नकुल, सहदेव, अर्जुन और अंत में भीम भी गिरकर मृत्यु को प्राप्त हो गए।
इन सबकी की मृत्यु के बाद युधिष्ठिर अभी कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए स्वयं देवराज इंद्र अपना रथ लेकर आ गए। तब युधिष्ठिर ने इन्द्र से कहा कि मेरे भाई और द्रौपदी रास्ते में ही गिर पड़े हैं और जबकि उन्हे पूरी मेरे साथ पूरी यात्रा ती है सो आप कुछ एेसा कीजिए कि वे भी हमारे साथ स्वर्ग चलें। तब इन्द्र ने कहा कि वे सभी पहले ही स्वर्ग पहुंच चुके हैं। बस फर्क सिर्फ इतना है कि वे सभी शरीर त्यागकर स्वर्ग पहुंचे हैं और आप सशरीर स्वर्ग में जाएंगे।
इन्द्र की बात सुनकर युधिष्ठिर ने कहा कि यह कुत्ता मेरा परम भक्त है इसलिए इसे भी मेरे साथ स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए, लेकिन इन्द्र ने ऐसा करने से मना कर दिया। काफी देर समझाने पर भी जब युधिष्ठिर बिना कुत्ते के स्वर्ग जाने के लिए नहीं माने तो कुत्ते के रूप में यमराज अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए।
आपको बता दें कि वह कुत्ता वास्तव में यमराज ही थे। युधिष्ठिर को अपने धर्म में स्थित देखकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए। इसके बाद देवराज इन्द्र युधिष्ठिर को अपने रथ में बैठाकर स्वर्ग ले गए।