बिहार विधानसभा चुनाव-2020 के नतीजे आ चुके हैं। इसमें एनडीए को बहुमत के आधार पर सरकार और नीतीश कुमार को चौथी बार बिहार का मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला है, लेकिन पटना से लेकर दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में नीतीश के मुख्यमंत्री पद संभालने पर संशय पैदा होने लगा है। हालांकि भाजपा के नेता बिहार का अगला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही बता रहे हैं। भाजपा के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी, संबित पात्रा, जफर इस्लाम समेत अन्य ने नीतीश को ही मुख्यमंत्री बनाया है।
इससे पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी स्पष्ट किया था कि चुनाव के बाद भाजपा की सीटें चाहे जितनी आएं, लेकिन मुख्यमंत्री का पद नीतीश कुमार के ही पास रहेगा। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री के पद को लेकर नीतीश कुमार ने भी कुछ कहा है। नीतीश कुमार ने इस पद से चिपकने की छवि से बचने की रणनीति पर चलते हुए बयान दिया कि उन्होंने कब कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री का पद मिले।
माना जा रहा है कि बुधवार को भाजपा, एनडीए, वीआईपी और हम पहले जीत का जश्न मनाएगी और इसके बाद मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और सरकार में सत्ता की भागीदारी को लेकर राजनीति का दौर शुरू हो सकता है।
नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक कैरियर में कई बार नैतिकता को शीर्ष पर रखा है। 1999 में नीतीश कुमार अटर बिहारी वाजपेयी की सरकार में रेल मंत्री थे, लेकिन उन्होंने पश्चिम बंगाल में हुए हादसे की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद से इस्तीफा दे दिया था। दूसरी बार नीतिश कुमार का नैतिक बल 2005 में सामने आया था। नीतीश कुमार के पास सरकार बनाने का बहुमत नहीं था।
लोक जनशक्ति पार्टी के नेता राम विलास पासवान की पार्टी के 29 विधायक चुनाव जीतकर आए थे। पासवान जद(यू) को समर्थन नहीं देना चाहते थे। ऐसे में लोजपा के टूटने का खतरा पैदा हो गया था। इस स्थिति में नीतीश कुमार ने खुद को सरकार बनाने से पीछे खींच लिया था। क्योंकि उन्हें नैतिक रूप से सही नहीं लग रहा था।
नीतीश कुमार मुख्यमंत्री और एनडीए के सहयोगी दल के नेता थे। उन्होंने मुख्यमंत्री रहने के दौरान बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार में 2012 तक गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रचार के लिए एंट्री नहीं होने दी। इसके पीछे की वजह 2002 के गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगे थे। जैसे ही 2013 में भाजपा ने नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव 2014 के प्रचार अभियान का प्रमुख बनाया, नीतीश ने जद(यू) को अलग कर लिया।
जिम्मेदारी अपने ऊपर ली और पद से इस्तीफा देकर जीतनराम माझी को अपना उत्तराधिकारी बनवाया। इसी तरह से 2017 में उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। तब बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में जद(यू), राजद, कांग्रेस गठबंधन की सरकार चल रही थी। नीतीश ने यहां भी महागठबंधन से नैतिकता को आधार बनाकर नाता तोड़ लिया। इस्तीफा दिए और बाद में और एनडीए में शामिल हो गए।
नीतीश कुमार एक बार फिर नैतिकता की आड़ ले सकते हैं। उन्हें पता है कि भाजपा की तुलना में जद(यू) की 29 सीटें आई हैं। इसके अलावा एनडीए की सरकार बनने पर वह भले मुख्यमंत्री बन जाएं लेकिन सरकार का चेहरा वही रहेंगे और इसमेंं भाजपा की ही भागेदारी अधिक रहने वाली है। ऐसे में उन्हें दबाव में काम करना पड़ सकता है।
राजनीति के चतुर नीतीश कुमार स्थिति की गंभीरता को देखते हुए नैतिकता का सहारा लेकर हार की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले सकते हैं। वह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर स्वेच्छा से इस पद का प्रस्ताव भाजपा को दे सकते हैं।
भाजपा के खेमे से चलकर ही रविशंकर प्रसाद के बिहार का अगला मुख्यमंत्री बनने की सूचना आई है। बिहार चुनाव प्रचार प्रक्रिया के दौरान दूसरे राज्यों से गए संघ और भाजपा के नेताओं के बीच में भी मुख्यमंत्री के तौर पर रविशंकर प्रसाद का नाम चर्चा का विषय बना था। चर्चा यही थी कि भाजपा की सीटें अधिक आने पर जद(यू) के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केन्द्र में प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रिमंडल का हिस्सा बनेंगे और रविशंकर प्रसाद बिहार संभालेंगे।
वैसे रविशंकर प्रसाद केंद्र सरकार में मंत्री हैं और अनुभवी नेता हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का उन्हें विश्वास हासिल है। आरएसएस भी रविशंकर के बारे में अच्छी राय रखता है। ऐसे में अनुकूल परिस्थितियों में भाजपा को उन्हें राज्य मुख्यमंत्री बनाने में कोई हिचकिचाहट होने की संभावना कम है।