क्या आप जानते हैं कि लिंगायत समुदाय क्या है और कर्नाटक के लिए यह क्यों महत्वपूर्ण है? हम आपको बताते हैं। दरअसल लिंगायत को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है। यहां के 18 फीसदी लोग लिंगायत समाज से आते हैं।
बात 12वीं सदी की है जब समाज सुधारक बासवन्ना ने हिंदुओं में जाति व्यवस्था में दमन के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। बासवन्ना मूर्ति पूजा नहीं मानते थे और वेदों में लिखी बातों को भी खारिज करते थे। लिंगायत समुदाय के लोग भी शिव की पूजा भी नहीं करते बल्कि अपने शरीर पर ही इष्टलिंग धारण करते हैं जोकि एक गेंद की आकृति के समान होती है।
लिंगायत समुदाय और राजनीति का संबंध
1989 में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो राजीव गांधी ने एक विवाद की वजह से चुने हुए सीएम पाटिल को पद से हटा दिया जिसके बाद लिंगायत समुदाय ने कांग्रेस का दामन छोड़कर रामकृष्ण हेगड़े का समर्थन किया।
हेगड़े के निधन के बाद बीजेपी के येदियुरप्पा लिंगायतों के नेता बने। लेकिन जब बीजेपी ने उन्हें सीएम पद से हटाया तो लिंगायत फिर नाराज हो गए और बीजेपी से मुंह मोड़ लिया क्योंकि येदियुरप्पा का लिंगायत समुदाय में अच्छा प्रभाव था।
इसलिए कर्नाटक में आने वाले चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही लिंगायत समुदाय को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं। बीजेपी ने येदियुरप्पा को एक बार फिर नेता बनाया है क्योंकि उनका लिंगायत समुदाय में जनाधार बहुत मजबूत है।
बहरहाल राज्य सरकार के इस फैसले का आगामी चुनाव में सत्ताधारी कांग्रेस सरकार को कितना फायदा होगा यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा।