इंदौर में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की एक अदालत ने व्यापम घोटाले मामले में शुक्रवार को एक डॉक्टर को पांच साल की कैद और 1,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। आरोपी प्री मेडिकल टेस्ट में दूसरे की जगह परीक्षा देते पकड़ा गया था और वह जमानत मिलने पर फरार हो गया था। उसको मध्य प्रदेश मान्यता प्राप्त परीक्षा अधिनियम की संबंधित धाराओं और आइपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी) और 467 (जालसाजी) के तहत सजा सुनाई गई। वह बिहार के पटना का रहने वाला है।
सीबीआइ के विशेष लोक अभियोजक रंजन शर्मा ने समाचार एजेंसी एएनआइ को बताया कि अभियुक्त मनीष कुमार को 2004 में संत कुमार के स्थान पर प्री-मेडिकल प्रवेश परीक्षा लिखते हुए खंडवा से फ्लाइंग स्क्वाड द्वारा पकड़ा गया था। उन्होंने बताया कि मनीष कुमार, संत कुमार और तरुण कुमार के खिलाफ खंडवा में धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया था। बाद में, संत कुमार और तरुण कुमार को अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। मनीष जमानत मिलने के बाद लापता हो गया था।
सीबीआइ के अनुसार, आरोपी मनीष कुमार पटना में मेडिकल प्रवेश परीक्षा देने के बाद डॉक्टर बना। मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाला सामने आने के बाद 2018 में मामला सीबीआइ को सौंप दिया गया था। सीबीआइ ने मनीष कुमार को पटना से गिरफ्तार किया और अदालत में पेश किया, जिसके बाद मुकदमा शुरू हुआ। परीक्षा केंद्र के एक इनविजिलेटर ने पाया कि एडमिट कार्ड पर संत कुमार का नाम था, लेकिन उसपर लगा फोटो मनीष के चेहरे से नहीं मिल रहा था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, मनीष रुपयों के लिए परीक्षा में उपस्थित हुआ था।
बता दें कि मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा बोर्ड में धोखाधड़ी ( व्यापम घोटाले) के बारे में 2013 में पता चला था। इसमें मेडिकल छात्रों और राज्य सरकारी कर्मचारियों के चयन के लिए व्यापम द्वारा आयोजित 13 विभिन्न परीक्षाएं शामिल थीं।