उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में जिंदा मछली के खरीदार बढ़े तो बाजार का ट्रेंड बदल गया है। अब कारोबारी सीमेंट के टब बनवाकर उसमें जिंदा मछली रखते हैं और ग्राहकों को बेचते हैं। हालांकि जीवित मछलियों की कीमत 250 से 300 रुपये किलो तक होती है। शहर की ऐसी करीब 20 दुकानों से 20 से 30 क्विंटल जिंदा मछलियां प्रतिदिन बिक जाती हैं।
दरअसल, कोरोना महामारी और बर्ड फ्लू के खौफ के बीच ज्यादातर मांसाहारी लोग मुर्गे का मीट खाने से बचने लगे हैं। उनका रुझान मछली की ओर हो गया। इससे बाजार में जीवित मछलियों की मांग बढ़ गई। ताजा और बासी मछली की पहचान बहुत कम लोगों को होती है। ऐसे में ताजी मछलियों के चक्कर में लोग ताल और पोखरे में मछली मारने वालों के पास जाकर खरीदारी करने लगे।
इसी वजह से मछली बाजार का ट्रेंड बदल गया। शहर के पैडलेगंज, मोहद्दीपुर, कूड़ाघाट, हार्बर्ट बंधा और पादरी बाजार में छोटे-छोटे टब बनाकर जिंदा मछलियां रखी और बेची जा रहीं हैं। भगत चौराहा और सिक्टौर में प्लास्टिक के टब में जीवित मछलियां रखकर बेची जाती हैं।
जिंदा मछली बेचने वाले सत्यप्रकाश कहते हैं, करीब एक साल से जिंदा मछली बेच रहे हैं। ताजी और बासी मछली की पहचान बहुत कम ग्राहकों को है। इस वजह से उन्हें दिक्कत होती है। जब मछली जिंदा है तो किसी को दिक्कत नहीं होती है।
टब में आक्सीजन की मात्रा कम न होने पाए इसके लिए दुकानदार कूलर में लगने वाले टुल्लू पंप को पानी के अंदर लगाते हैं। एक टब में दो पंप लगाए जाते हैं। टब में मछली का चारा भी डाला जाता है।
पैडलेगंज तिराहे के पास मछली बेचने वाले अजय प्रजापति कहते हैं कि वे पहले अपने गांव के पास मछली का कारोबार करते थे। लॉकडाउन के बाद जिंदा मछली की मांग बढ़ी तो यहां आ गए। बस्ती, सिद्धार्थनगर और महराजगंज से जिंदा मछली मंगाते हैं। रोजाना करीब सवा क्विंटल मछलियां बिक जाती हैं।
रोहू, भाकुर, बैकल, ग्रास, नैनी।