कोरोना वायरस, 27 दिसंबर 2020 को शनि हो जाएंगे अस्त तो होगा प्रकोप कम

शनि के गोचर की अवधि सबसे अधिक होती है। क्योंकि यह ग्रह लगभग ढाई वर्ष में राशि परिवर्तन करता है इसलिए इन 30 महीनों की अवधि में शनि एक राशि में स्थित रहने के दौरान वह वक्री गति भी करता है और पुनः मार्गी हो जाता है। शनि की वक्री अवस्था को सामान्यतः शुभ नहीं माना जाता है। शनि के गोचर का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कहा जा रहा है कि शनि के अस्त होने से देश दुनिया में परिवर्तन होंगे।

2019 के अंत में कोरोना वायरस पूरी दुनिया के लिए घोर विपदा के रूप में सामने आया है। कई ज्योतिषियों का मानना था कि यह शनि, राहु और केतु के परिवर्तन के काण ऐसा हुआ था। ज्योतिष के जानकारों के अनुसार, कोविड-19 की शुरुआत, इसके फैलने की रफ्तार और इसके थमने का वक्त, सब कुछ ग्रहों की चाल और विभिन्न राशियों में उनके भ्रमण पर निर्भर है। इस लिहाज से ज्योतिषियों के अनुसार भारत समेत पूरे विश्व में अब कोरोना वायरस के प्रकोप के अंत की शुरुआत शनि के अस्त होने से हो जाएगी।

कर्म का स्वामी शनि वर्ष 2019 में धनु राशि रहा। इस दौरान 30 अप्रैल को शनि वक्री होकर 18 सितंबर को धनु राशि में पुनः मार्गी हो गया। 2020 में धनु राशि से अपनी स्वराशि मकर में 24 जनवरी को प्रवेश किया। इसी वर्ष 11 मई 2020 से 29 सितम्बर 2020 तक शनि ने मकर राशि में वक्री अवस्था में गोचर किया। अब इसी वर्ष शनि 27 दिसम्बर 2020 को अस्त भी हो जाएंगे, जिससे शनि के प्रभाव कुछ कम हो जाएंगे हैं।

शनि देव माघ महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि, 24 जनवरी 2020 को दोपहर करीब 12 बजकर 10 मिनट पर धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश किया। इसी बीच शनि ने वृश्चिक से धनु राशि में प्रवेश किया। दिनांक 20 जून की रात्रि 9 बजकर 08 मिनिट पर शनि ने अपनी वक्र गति से संचरण करते हुए वृश्चिक राशि में पुन: प्रवेश किया है। मतलब उसका मकर में वक्री और मार्गी होना जारी रहा। इस साल शनि ज्यादातर समय पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में स्थित रहेगा और 27 दिसंबर 2019 को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में प्रवेश करेगा। इस बीच शनि-मंगल समसप्तक, मंगल, राहु-मंगल का अंगारक योग और गुरु का षडाष्टक योग भी रहा, जिसके चलते महामारी का प्रकोप और भी बड़ा। परंतु अब यह कहा जा रहा है कि शनि के 27 दिसंबर को अस्त होकर अपने प्रभाव को कम कर देंगे और अगले साल वे मकर में ही रहेंगे।

धनु से मकर 24 जनवरी 2020 12:00 अपराह्नमकर

से धनु 11 मई 2020 12:00 अपराह्नधनु

से मकर 29 सितम्बर 2020 12:00 अपराह्न

आओ पहले जानते हैं ग्रहों की स्थिति :साल 2019 में मकर और कुंभ राशि का स्वामी शनि ज्यादातर समय पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में स्थित रहा और 27 दिसंबर 2019 को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में प्रवेश कर गया। इस पूरे साल शनि धनु राशि में रहा। मतलब बृहस्पति की राशि में रहा। फिर साल 2020 में शनि 24 जनवरी को धनु से निकलकर मकर में पहुंचा। इसी वर्ष 11 मई 2020 से 29 सितम्बर 2020 तक शनि मकर राशि में वक्री अवस्था में गोचर हुआ। इसी वर्ष शनि 27 दिसम्बर 2020 को अस्त भी हो जाएंगे। शनि एक राशि में ढाई वर्ष रहते हैं।

अब ग्रहण को देख लेते हैं : 2019 का पहला सूर्य ग्रहण 6 जनवरी को और दूसरा 2 जुलाई को था। वर्ष 2019 का अंतिम और एक मात्र सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई दिया। इस सूर्य ग्रहण का सूतक काल 25 दिसंबर 2019 को शाम 05:33 से प्रारंभ होकर 26 दिसंबर 2019 को सुबह 10:57 बजे तक रहा। अब वर्ष 2020 का पहला सूर्य ग्रहण 21 जून हो होगा।

अब संवत्सर की बात कर लेते हैं : वर्तमान में विक्रम संवत 2076-77 से प्रमादी नाम का संवत्सर प्रारंभ हुआ है। इसके पहले परिधावी नाम का संवत्सर चल रहा था। प्रमादी से जनता में आलस्य व प्रमाद की वृद्धि होगी।

नारद संहिता का दावा ये किया जा रहा है : दावा किया जा रहा है कि 10 हजार वर्ष पूर्व लिखी नारद संहिता में पहले ही कोरोना महामारी के फैलने और इसके खात्मा की भविष्यवाणी की गई है। दावा करने वाले इसके लिए एक श्लोक का उदारहण देते हैं…

भूपावहो महारोगो मध्यस्यार्धवृष्ट य:।

दु:खिनो जंत्व: सर्वे वत्सरे परिधाविनी।

अर्थात परिधावी नामक सम्वत्सर में राजाओं में परस्पर युद्ध होगा महामारी फैलेगी। बारिश असामान्य होगी और सभी प्राणी महामारी को लेकर दुखी होंगे।

ग्रह नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर दावा : सूर्य ग्रहण और पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र से प्रारंभ हुआ यह कोराना वायरस दावे के अनुसार अगले सूर्य ग्रहण तक कम होकर 29 सितंबर को शनि के मकर राशि से निकल जाते तक समाप्त हो जाएगा।

जानकारों की माने तो जिस वर्ष में वर्ष का अधिपति अर्थात राजा शनि होता है वह वर्ष महामारियों को धरती पर लाता है। कुछ लोगों का दावा है कि आयुर्वेद, वशिष्ठ संहित और वृहत संहिता अनुसार जो ‍बीमारी पूर्वा भाद्रपद के नक्षत्र में फैलती है वह अपने चरम पर जाकर लाखों लोगों के काल का कारण बनती हैं क्योंकि इस नक्षत्र में फैले रोग में दवा का असर नहीं होता है।

दावे के अनुसार बृहत संहिता में वर्णन आया है कि ‘शनिश्चर भूमिप्तो स्कृद रोगे प्रीपिडिते जना’ अर्थात जिस वर्ष के राजा शनि होते है उस वर्ष में महामारी फैलती है। विशिष्ट संहिता अनुसार पूर्वा भाद्र नक्षत्र में जब कोई महामारी फैलती है तो उसका इलाज मुश्किल हो जाता है। विशिष्ट संहिता के अनुसार इस महामारी का प्रभाव तीन से सात महीने तक रहता है। जिस दिन चीन में यह महामारी फैली अर्थात 26 दिसंबर 2019 को पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र ही था और सूर्य ग्रहण भी। दावा किया गया है कि पूर्व के एक देश में ग्रहण के लगने के बाद फैलेगी एक महामारी।

भारत में 25 मार्च 2020 से नवसंवत्सर 2077 वर्ष लगा जिसका नाम प्रमादी है और जिसका राजा बुध एवं मंत्री चंद्र है। प्रमादी सम्वत्सर में अधिकतर जनता में आलस्य और रोग बढ़ जाते हैं। दूसरी ओर शनि अब वक्री हो गए हैं और 21 जून को साल का पहला सूर्य ग्रहण होने वाला है तो ऐसे में दावा किया जा रहा है कि यह महामारी का प्रकोप 21 जून के आते आते घट जाएगा। शनि 29 सितंबर तक मकर राशि में रहेगा तब तक यह रोग पूर्णत: समाप्त नहीं होगा।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com