लगातार बढ़ती भूजल पर निर्भरता से भूजल स्तर प्रत्येक वर्ष औसतन एक फीट की दर से नीचे खिसक रहा है। धरती का सीना चीरकर लगातार पानी खींचने का ही परिणाम है कि आज देश के एक चौथाई ब्लॉक डार्क जोन में आ चुके हैं। नासा के सेटेलाइट ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरीमेंट के अनुसार पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में भू-जल भंडार तेजी से खाली हो रहे हैं। पिछले दिनों देश में लगभग दो महीने चली तालाबंदी के दौरान अप्रत्याशित रूप से देश के कई हिस्सों में भूजल स्तर सुधरा। दरअसल इस दौरान तमाम मदों में पानी का हो रहे अपव्यय पर लगाम लगी रही। जो उद्योग प्रतिदिन लाखों लीटर भू-जल खींचकर उपयोग में लाते थे तालाबंदी से ऐसा नहीं हो पाया। इस दौरान प्रति व्यक्ति कम उपभोग के चलते भी पानी की बचत हुई, लेकिन ज्यों-ज्यों तालाबंदी को खोला गया वैसे ही भू-जल का उपभोग पहले ही तरह ही धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहा है।
जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार के नेशनल कमीशन फॉर इंटीग्रेटेड वॉटर रिसोर्सेज डेवलपमेंट प्लान और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के अध्ययन के अनुसार उद्योग व ऊर्जा क्षेत्र में कुल भूजल की मांग आज के करीब 7 प्रतिशत के मुकाबले वर्ष 2025 तक 8.5 प्रतिशत हो जाएगी जो वर्ष 2050 तक बढ़कर करीब 10.1 प्रतिशत हो जाएगी। ऐसे में सहज ही समझा जा सकता है कि भविष्य के लिए भूजल बचाना कितना आवश्यक है? ऐसे में फिक्की की वह रिपोर्ट भी चिंता में डालने वाली है कि उद्योग पानी की कमी से जूझ रहे हैं। कृषि क्षेत्र में भू-जल की मांग वर्ष 2010 के 77.3 प्रतिशत के मुकाबले वर्ष 2050 तक घटकर 70.9 प्रतिशत ही रह जाएगी अर्थात भविष्य में जहां उद्योग व ऊर्जा में पानी की मांग बढ़ेगी व वहीं सिंचाई में घटेगी।
पिछले पांच माह में दिल्ली व उसके निकट के राज्यों में करीब एक दर्जन बार भूकंप के हल्के झटके महसूस किए जा चुके हैं। यह भू-जल दोहन का स्पष्ट संकेत है क्योंकि ज्यों-ज्यों जमीन के नीचे का पानी खत्म हो रहा है उससे नीचे के जल भंडार रीते हो रहे हैं। इससे जमीन के नीचे की टेक्टोनिक प्लेट्स धीरे-धीरे खिसक रही हैं। अगर हालात यही रहे तो निकट भविष्य में बड़े भूकंप की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। उद्योगों को पानी के पुन: इस्तेमाल के लिए मजबूर करना होगा। प्रत्येक व्यक्ति को उपभोक्तावाद में कमी करनी होगी। हम जो कुछ भी उपयोग करते हैं उसकी समझ बनानी होगी कि वह कितने पानी के इस्तेमाल से बनी है और क्या उसके बगैर हमारा जीवन चल सकता है? अगर यह समझ देश बना ले और भू-जल दोहन के लिए उपयुक्त व कठोर कानून अमल में आ जाएं तो भविष्य पानीदार संभव है।