कोरोना काल में सामाजिक दूरी की अनिवार्यता से मेट्रो शहर के साथ छोटे शहरों में भी ई-फार्मेसी को तेजी से अपनाया जा रहा है। कोरोना खत्म होने के बाद ई-फार्मेसी लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बनने जा रही है। सरकार भी अगले एक-दो महीने में ई-फार्मेसी की प्रस्तावित पॉलिसी को अपनी मंजूरी दे सकती है। अन्र्स्ट एंड यंग (ईवाई) की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2025 में भारत में ई-फार्मेसी का कारोबार 4.5 अरब डॉलर का होगा। वर्ष 2019 में भारत में ई-फार्मेसी का कारोबार सिर्फ 0.5 अरब डॉलर का था।
ईवाइ के सर्वे के मुताबिक इस साल जून में ई-फार्मेसी का 30 फीसद कारोबार मेट्रो से इतर शहरों से हुआ। दो साल पहले ई-फार्मेसी का सिर्फ 10 फीसद कारोबार मेट्रो से इतर होता था। ईवाइ के मुताबिक ई-फार्मेसी कंपनियां छोटे-छोटे मेडिकल स्टोर के साथ करार के लिए पहुंच रही है। वर्ष 2021 में ई-फार्मेसी का इन छोटे स्टोर के साथ पार्टनरशिप होने की संभावना है।
सरकार द्वारा ई-फार्मेसी के प्रस्तावित नियमों को मंजूरी दिए जाने पर इस कारोबार में नए निवेश की उम्मीद है। सरकार ने दो साल पहले ई-फार्मेसी के प्रस्तावित नियमों पर स्टेकहोल्डर्स की राय जानने के लिए मसौदा जारी किया था। इस मसौदे के पक्ष में 7000 लोगों ने अपनी राय रखी हैं। सिर्फ 350 लोगों ने इस मसौदे का विरोध किया हैं। प्रस्तावित नियमों के तहत सभी ई-फार्मेसी कंपनियों को केंद्रीय प्राधिकरण के तहत पंजीकृत होना होगा और उन्हें मरीज के सभी डाटा को गोपनीय रखना होगा।
ईवाइ की रिपोर्ट के मुताबिक अभी ई-फार्मेसी का कारोबार मुख्य रूप से सिर्फ 3-4 कंपनियां ही कर रही है। लेकिन ई-फार्मेसी के नियम को सरकारी मंजूरी मिलते ही इस क्षेत्र में कई नई कंपनियां आएंगी। भारत में ई-फार्मेसी के कारोबार में हर साल 44 फीसद की बढ़ोतरी का अनुमान है। ईवाइ के सर्वे के मुताबिक ई-फार्मेसी से दवा मंगाने के दौरान 60 फीसद लोगों को दवा सही या नहीं, इस बात की की चिंता रहती है। 57 फीसद को दवा की समय पर डिलीवरी को लेकर संशय रहता है तो 24 फीसद लोगों को कीमत की चिंता रही है कि कहीं उनसे अधिक कीमत तो नहीं ली जा रही है। दवा के पुर्जे को ऑनलाइन अपलोड करने के दौरान मरीज को अपनी बीमारी व अन्य जानकारी के सार्वजनिक होने की आशंका रहती है।