भारत में पहली बार कोयला उत्पादन सौ करोड़ टन के आंकड़े को पार किया है। इसकी जानकारी शुक्रवार को कोयला मंत्री जी कृष्ण रेड्डी ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर देते हुए लिखा कि, “एक अरब टन के कोयला उत्पादन को हासिल कर लिया गया है। यह अत्याधुनिक तकनीक और प्रभावशाली प्रक्रिया से संभव हुआ है। यह उपलब्धि हमारी बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने और आर्थिक प्रगति को बना कर रखने में मदद करेगा। पीएम नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ऊर्जा सेक्टर में एक वैश्विक लीडर बनेगा।”
सौ करोड़ टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य
इसके बाद पीएम नरेन्द्र मोदी ने भी इसे एक बड़ी उपलब्धि बताते हुए कहा कि यह ऊर्जा सुरक्षा को लेकर हमारी प्रतिबद्धता को दिखाता है। अगर आंकड़ों की बात करें तो इस साल सौ करोड़ टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य हासिल होने की संभावना काफी पहले से थी।
लोकसभा में कोयला मंत्री ने पहले बताया है कि वर्ष 2023-24 में भारत का कोयला उत्पादन 99.27 करोड़ टन था जबकि इसके पिछले वर्ष 2022-23 में 83.19 करोड़ टन रहा था। कोयला उत्पादन के मामले में वर्ष 2025-26 में 119 करोड़ टन का लक्ष्य रखा गया है।
भारत शुद्ध तौर पर कोयला निर्यातक देश बन सकता है
जबकि देश में ताप बिजली घरों की जरूरत को देखते हुए वर्ष 2030 तक 150 करोड़ टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। अगर कोयला उत्पादन का स्तर ऐसा ही बना रहे तो अगले दो वित्त वर्षों के बाद भारत शुद्ध तौर पर कोयला निर्यातक देश बन सकता है।
भारत आज दुनिया में कोयले का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक
भारत आज दुनिया में कोयले का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक व उपभोक्ता देश है। बिजली मंत्रालय ने अगले वित्त वर्ष के लिए 91 करोड़ टन कोयला की मांग की है। जबकि उत्पादन 119 करोड़ टन होने की संभावना है। भारत में कुल कोयला उत्पादन का 75 फीसद बिजली सेक्टर में चला जाता है जबकि शेष 25 फीसद कोयला का इस्तेमाल सीमेंट, स्टील, उर्वरक सेक्टर में होता है।
अब सीमेंट व स्टील कंपनियां तेजी से कोयले की खपत घटाने में जुटी हैं क्योंकि प्रदूषण घटाने का दबाव इन पर बढ़ता जा रहा है। मसलन, यूरोपीय देशों ने उन कंपनियों से स्टील लेने पर रोक लगाने का ऐलान किया है जो कोयले या इसके जैसे दूसरे ईंधन का इस्तेमाल करती हैं। ऐसे में तीन से चार वर्षों बाद देश के गैर-बिजली सेक्टर में कोयला की खपत घट जाने की संभावना है।
देश में बिजली की निर्बाध आपूर्ति के लिए जरूरी कोयला
घरेलू उत्पादन बढ़ने की वजह से भारत में कोयला आयात कम होने लगा है। केंद्रीय बिजली मंत्रालय की तरफ से ही ताप बिजली संयंत्रों पर अपनी जरूरत का एक हिस्से की आपूर्ति आयातित कोयले से पूरा करने का दबाव बनाया जाता रहा है। सरकार का तर्क रहा है कि यह देश में बिजली की निर्बाध आपूर्ति के लिए जरूरी है।
ताप बिजली संयंत्रों ने वर्ष 2024 में 55 लाख टन कोयला आयात किया था जो वर्ष 2023 के मुकाबले तीन फीसद कम था। उत्पादन व खपत के इस समीकरण की वजह से भारत वर्ष 2028 में कोयला निर्यातक बन सकता है।
ताप बिजली संयंत्रों की कुल क्षमता 2.20 लाख मेगावाट
केंद्र सरकार वर्ष 2014 से लेकर जनवरी, 2025 के बीच देश में रिनीवेबल (सौर, पवन, बायोगैस, पनबिजली आदि) की बिजली उत्पादन क्षमता 36 हजार मेगावाट से बढ़ा कर 2.12 लाख मेगावाट कर लिया है। इसमें 1.45 लाख मेगावाट तो सिर्फ सोलर और पवन है। जबकि ताप बिजली संयंत्रों की कुल क्षमता 2.20 लाख मेगावाट है। यानी को उत्पदान क्षमता के मामले में रिनीवेबल ऊर्जा सेक्टर का हिस्सा आधा हो गया है लेकिन बिजली आपूर्ति के मामले में इसकी हिस्सेदारी 72 फीसद के करीब है।
कोयले की अहमियत लंबे समय तक बने रहने की उम्मीद
देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए कोयले की अहमियत लंबे समय तक बने रहने की उम्मीद है। वर्तमान साल में बिजली की अधिकतम मांग 2.70 लाख मेगावाट पहुंचने की रिपोर्ट केंद्रीय एजेंसियों ने तैयार की है जबकि वर्ष 2024 में अधिकतम मांग 2.52 लाख मेगावाट तक पहुंचा था।
रिनीवेबल ऊर्जा सेक्टर की तकनीकी सीमाओं को देखते हुए बिजली मंत्रालय ने 90 हजार मेगावाट क्षमता की ताप बिजली सेक्टर में जोड़ने की बात कही है। ऐसे में कोयला उत्पादन की रफ्तार और बढ़ानी पड़ सकती है।