बीजापुर मुठभेड़ में सुरक्षा बलों को भारी नुकसान पहुंचाने के बाद नक्सलियों का सीआरपीएफ के एक कोबरा कमांडो को अपने कब्जे में ले लेना और पांच दिन बाद उसे रिहा कर देना, इन सबके पीछे की कहानी कुछ और है। नक्सली चाहते तो वे उसे मार सकते थे, लेकिन कमांडो को सुरक्षित तरीके से वापस लौटा दिया। सीआरपीएफ ने कमांडो की मेडिकल जांच के बाद कहा, वह पूरी तरह स्वस्थ है।
दरअसल, कोबरा कमांडो को कब्जे में लेने के पीछे की असल कहानी ये है कि नक्सली ‘दिल्ली’ यानी केंद्र सरकार तक एक संदेश पहुंचाना चाहते थे। इस संदेश में ‘चेतावनी’ और ‘बातचीत’ दोनों राज छिपे हैं। नक्सली पिछले साल से ही सरकार के साथ बातचीत करना चाह रहे थे। मार्च में बातचीत की खबरें आने लगी थीं, लेकिन 23 मार्च को नारायणपुर में नक्सलियों ने आईईडी धमाके में डीआरजी के पांच जवानों को मार दिया।
बीजापुर में 22 जवान मार दिए और उसके बाद कोबरा कमांडो को छोड़ने से पहले यह शर्त रखी कि सरकार बातचीत के लिए मध्यस्थों के नामों की घोषणा करे। नक्सलियों के साथ बातचीत कर रहे मध्यस्थों की मानें तो ये सारी लड़ाई ‘तव्वजो’ को लेकर है। आरोप यह भी है कि केंद्र सरकार ने नक्सलियों के साथ बातचीत के प्रस्ताव को गंभीरता से नहीं लिया।
कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह को छुड़ाने के लिए भले ही स्थानीय स्तर पर यह प्रचारित किया गया कि सुरक्षा बलों ने कमांडो के बदले आदिवासी ‘कुंजाम सुक्का’ को छोड़ दिया है। यह एक छोटी डील का हिस्सा तो हो सकता है, मगर पूरी कहानी का केंद्र नहीं। कमांडो को छुड़ाने के लिए नक्सलियों के साथ बातचीत करने पहुंचीं सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं पत्रकारों की टीम से मिली जानकारी के मुताबिक, पहले हमला और उसके बाद कोबरा कमांडो को पकड़कर अपने साथ ले जाना, ये सभी घटनाएं औचक नहीं हैं।
छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम रमन सिंह ने तो इस मामले में सरकार से स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा है। उनका कहना है, जो असली डील हुई है, सरकार उसके बारे में बताए। दूसरी तरफ ये बातें भी सामने आईं कि उन्होंने केवल एक ही कमांडो को क्यों पकड़ा, जबकि मुठभेड़ के दौरान कुछ समय तक ऐसी परिस्थिति भी बनी थी कि वे कई कमांडो को पकड़ सकते थे।
मध्यस्थों के अनुसार, नक्सलियों ने जब कोबरा जवान को छोड़ा, तो उन्होंने इसके लिए बाकायदा सैकड़ों लोगों को एकत्रित किया था। नक्सलियों ने जवानों को रिहा करने से पहले उसका वीडियो बनाया और काफी देर तक स्थानीय भाषा में ग्रामीणों से बातचीत की। नक्सलियों का कहना था कि हम बातचीत करना चाहते हैं, मगर केंद्र सरकार आगे नहीं आ रही है। गत माह नारायणपुर में डीआरजी के पांच जवानों को मारने के पीछे भी यही कहानी थी। उस समय तक सरकार ने बातचीत का कोई मसौदा तैयार नहीं किया था। उसके बाद बीजापुर का ऑपरेशन शुरू हो गया। इसका मतलब सीधा था कि सरकार बातचीत नहीं करना चाहती। सामने से जवानों को अपनी तरफ बढ़ते देख नक्सलियों ने हमला कर दिया।
खास बात ये है कि सुरक्षा बलों के 22 जवानों को शहीद करने के बाद नक्सलियों ने दोबारा बातचीत करने का मुद्दा उठा दिया। इस बार उनके कब्जे में कोबरा कमांडो था, तो उन्होंने अपने दो पत्र मीडिया में जारी कर दिए। दूसरे पत्र में कहा गया कि वे कमांडो को रिहा करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते सरकार पहले बातचीत के लिए मध्यस्थों के नामों की घोषणा करे। सरकार ने नामों की घोषणा नहीं की और कमांडो भी छूट गया, इसका भी एक बड़ा मतलब है। बता दें कि मौजूदा समय में नक्सल प्रभावित कई इलाकों की स्थिति ऐसी है कि वहां जाकर ये नहीं तय कर सकते हैं कि कौन नक्सली है और कौन सामान्य ग्रामीण। नक्सलियों ने ग्रामीणों को डरा कर अपनी तरफ कर रखा है। उनके सामने नक्सलियों ने खुद को एक हीरो की तरफ पेश किया। कहा, हम बात करना चाह रहे हैं, लेकिन दिल्ली वाले तव्वजो नहीं दे रहे।
कमांडो को अपने साथ ले जाने के पीछे नक्सली, सरकार को चेताना चाहते थे कि वह उनके साथ बातचीत करे। सरकार उन्हें कमजोर न समझे। अगर सरकार बातचीत का रास्ता बंद करना चाहती है तो नक्सली भी अपने तरीके से जवाब देते रहेंगे। वार्ताकार के अनुसार, नक्सलियों ने कोबरा कमांडो को पकड़कर और उसके बाद उसे छोड़कर यह संदेश दिया है कि सरकार हमसे बात करे। अगर सरकार आगे नहीं आना चाहती तो हमारे पास अपना रास्ता है।
हालांकि कमांडो को छोड़कर नक्सलियों ने अपनी कथित ‘छवि’ सुधारने का एक प्रयास किया है। वे यह दिखाना चाह रहे हैं कि वे भी मानवाधिकारों को समझते हैं। यह सब इसलिए किया जा रहा है कि अब नक्सलियों का नाम हर तरह के अपराध से जोड़ा जा रहा है। राष्ट्र विरोधी ताकतों से मदद लेना, नशे की खेती, लूटपाट और डरा धमका कर ग्रामीणों पर अप्रत्यक्ष तरीके से सत्ता चलाना आदि, इन कायों के चलते उनकी छवि खराब हुई है। अब उनकी इस बात पर बहुत कम लोग भरोसा करते हैं कि वे जंगल, जमीन और आदिवासियों के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।
पूर्व सीएम और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कहा, इसे सरकार की कमजोरी ही कहा जाएगा कि दस दिन के भीतर नक्सलियों ने दूसरी बार इतना बड़ा हमला किया है। बस्तर जैसे संवेदनशील इलाके में आईजी की नियुक्ति नहीं की जा रही है। सरकार से नीतिगत निर्णय लेने में भारी चूक हुई है। इससे पहले डीजीपी डीएम अवस्थी ने कहा कि सुरक्षा बलों पर हमला करने वाले नक्सली भले ही देखने में गरीब लगते हैं, लेकिन वे ऐसे नहीं हैं। आज उनके पास अपार आर्थिक संसाधन हैं। देशद्रोही संगठन उन्हें मदद पहुंचा रहे हैं। केंद्रीय एजेंसियां एवं राज्य पुलिस ऐसे मददगारों का पता लगाकर उन्हें खत्म करने का प्रयास कर रही हैं।
सीआरपीएफ डीजी कुलदीप सिंह कहते हैं, सुरक्षा बल लगातार नक्सलियों के ठिकाने की तरफ बढ़ते जा रहे हैं। पहले 40/40 का घेरा था, अब 30/30 से कम हो गया है। बहुत जल्द वह 20/20 के फेर में आ जाएगा। नक्सलियों का दायरा तेजी से सिमटता जा रहा है।