हर दिन घर में बात हो रही थी कि बहुत ज्यादा बारिश हो रही है, अंदर भी पानी आने की संभावना है लेकिन फिर नेटवर्क चला गया और बात होना बंद हो गई। मलयाली टीवी चैनल पर पता चला कि एलप्पुजा में बाढ़ आ गई है। परेशान होकर कई जगह फोन लगाया लेकिन घरवालों से कोई संपर्क नहीं हो पाया। कई दिन बाद बुआ को फोन लगा। उन्होंने जानकारी दी कि टीवी के जरिए उन्हें पता चला है कि मेरे घर के लोग किसी राहत शिविर में सुरक्षित हैं लेकिन अब तक यह नहीं पता चल पाया कि वे किस शिविर में हैं। दिनभर संपर्क करने की कोशिश कर रही हूं लेकिन कुछ पता नहीं चल पाया। जिस गांव में मेरा घर है, वहां से सभी लोगों को हटा दिया है सिर्फ 16 लोग ही बचे हैं।
यह कहना है चोइथराम कॉलेज ऑफ नर्सिंग में फैकल्टी जुबी जैकब का जो एलप्पपुजा की निवासी हैं। उन्हीं की तरह कॉलेज में कई और फैकल्टी व स्टूडेंट्स हैं जिनके परिवार के लोग केरल के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में फंसे हुए हैं। ‘नईदुनिया’ ने उनसे बातचीत कर उनके परिवार वालों की स्थिति जानी।
अचम्मा वर्गीस कहती हैं मेरी 76 साल की मां अकेले रहती हैं। खबर मिलते ही फोन लगाया लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली। दिन-रात परेशान रही, फिर छठे दिन मां की आवाज सुनने को मिली। खुशी हुई जब उन्होंने बताया कि सिर्फ हमारे घर के अंदर पानी नहीं है, हालांकि बाहर पानी भरा है। मां ने पड़ोसियों को भी अपने घर में रखा है और देखरेख कर रही हैं। खाने की दिक्कत है तो समय-समय पर राहत शिविर वाले जो लाकर देते हैं, वही सब मिलकर खाते हैं।
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