राजधानी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार दावा करती है कि उसने पिछले 4 सालों में स्कूली शिक्षा की पूरी दशा ही बदल दी. स्कूलों की नई बिल्डिंग बनी है, तो वही स्कूलों का रिजल्ट भी बहुत बेहतर हुआ है, लेकिन पूर्वी दिल्ली के ही मुस्तफाबाद इलाके का राजकीय उच्च माध्यमिक बालिका/बालक विद्यालय इन तमाम दावों की पोल खोलकर रख देता है. ये स्कूल आज भी टेंट में चलता है और यहां चार शिफ्ट लगाकर बच्चों को शिक्षा दी जा रही है. सुबह से लेकर दोहपर 1 बजे तक यहां दो अलग अलग शिफ्ट में छात्राओं को पढ़ाया जाता है, वहीं 1 बजे के बाद से शाम तक दो अलग अलग शिफ्ट में छात्रों को शिक्षा दी जाती है.
इस तरह से एक शिफ्ट के छात्र-छात्राओं के हिस्से महज़ दो से ढाई घण्टे ही आ पाते है. ये इलाका अल्पसंख्यक आबादी वाला इलाका है और इस स्कूल में करीब 80 फीसद से ज्यादा बच्चे अल्पसंख्यक समुदाय के पढ़ते है. करीब दो दशक पहले बना ये स्कूल आज बदइंतजामी और बदहाली की ऐसी दास्तां बयान करता है, कि देखकर ही हैरत होती है कि राजधानी दिल्ली में ऐसे किसी स्कूल के हालात हो सकते है.
मुस्तफाबाद के सामाजिक कार्यकर्ता अमजद अंसारी कहते है, कि इस स्कूल को लेकर वो अपनी आवाज़ हर अधिकारी तक पहुंचा चुके हैं, यहां तक कि दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को ई मेल और ख़त लिखकर भी सूचित किया गया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. अमजद बताते है कि स्कुलनक दसवीं क्लास का रिजल्ट भी महज 20 प्रतिशत तक रहता है.
इस स्कूल में पढ़ाई कर चुके एक पूर्व छात्र ने बताया कि पहले यहां एक दिन एक क्लास के बच्चों को स्कूल बुलाया जाता था, और दूसरी क्लास के बच्चों की छुट्टी रहती थी, लेकिन अब चार शिफ्टों में छात्र-छात्राओं को पढ़ाया जा रहा है, जो सही नहीं.
इस स्कूल को लेकर ना तो प्रिंसिपल और ना ही शिक्षा विभाग के अधिकारी बात करते है, और ही कोई संतोषजनक जवाब दे पाते है. इलाके के लोग कहते है कि पहले यहां अधिकारी कोर्ट कचहरी की बात कहकर स्कूल को पक्का ना करने की बात कहते है लेकिन वो मुद्दा भी सुलझ गया , फिर भी स्कूल को पक्की छत नसीब नहीं हुई. राजधानी दिल्ली के किसी स्कूल में अगर ये हालात हो तो यक़ीनन सरकार के लिए इससे ज्यादा शर्मिंदगी नहीं हो सकती. दिल्ली सरकार को इस सिलसिले में कड़ा और बड़ा कदम उठाने की जरूरत है.