रवनीत बिट्टू पंजाब के पूर्व सीएम स्व. बेअंत सिंह के पोते हैं। वे लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले ही भाजपा में शामिल हुए थे। पंजाब कांग्रेस के प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने बिट्टू को लुधियाना से मात दी थी। हालांकि हारने के बाद भी बिट्टू को मोदी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है।
केंद्रीय राज्य मंत्री का पद पाने वाले रवनीत सिंह बिट्टू ने बंदी सिंहों की रिहाई पर नर्म दिल दिखाते हुए कहा है कि वह बड़े दिल के साथ इन मामलों के बारे में पीएम व केंद्रीय गृहमंत्री से बात करेंगे कि अब काफी कुछ हो चुका है, मिट्टी डालो।
अचानक पंथक मुद्दों पर बिट्टू की बयानबाजी से राजनीतिक हलकों में चर्चा छिड़ गई है। हर कोई इसे अपने-अपने नजरिए से रवनीत बिट्टू की सोच में बदलाव, यू-टर्न और पैंतरे के तौर पर देख रहा है। हालांकि, बंदी सिहों की रिहाई पर बिट्टू हमेशा आक्रामक रहते थे और इसका खुलकर विरोध करते थे। इन मामलों को अकाली दल ही केंद्र सरकार के सामने उठाता रहा है।
पिछली सरकार में शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने और बलवंत सिंह राजोआणा की जल्द रिहाई सुनिश्चित करने की अपील की तो बिट्टू ने सुखबीर पर तीखा हमला बोला और कहा कि देश के सबसे बड़े आतंकवादी की रिहाई के लिए सुखबीर सिंह बादल की बार-बार की मांग देश विरोधी ताकतों की एक गहरी साजिश का हिस्सा है। देश विरोधी एजेंसियों के कहने पर सुखबीर बादल, हरसिमरत बादल और अकाली दल हर छह महीने में संसद में बार-बार प्रधानमंत्री को पत्र लिख रहे हैं। वह उस आतंकवादी की रिहाई की मांग कर रहे हैं, जिसने पंजाब के एक मुख्यमंत्री के साथ-साथ 17 अन्य व्यक्तियों को बम के साथ शहीद किया था। सुखबीर बादल बताएं कि उनकी ऐसी क्या मजबूरी है जो बार-बार एक ही मांग कर रहे हैं। अब लगता है कि सुखबीर बादल मुझे और मेरे परिवार को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, लेकिन अब अचानक बिट्टू ने बंदी सिंहों की रिहाई की हिमायत करनी शुरू कर दी है।
सिख विरोधी दंगों में न्याय का मुद्दा भी उठाया
मंत्री पद की शपथ लेने के बाद रवनीत सिंह बिट्टू ने बंदी सिंहों को रिहा करने, जून और नवंबर 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़ी घटनाओं के सिखों को न्याय दिलाने, किसान मुद्दों को हल करने और आपसी संबंधों के बीच पुल बनाने का दावा किया. पंजाब और केंद्र सरकार के बयान की अलग-अलग व्याख्या की जा रही है। रवनीत बिट्टू के बयान से अकाली हलकों में भूचाल आना स्वाभाविक है, क्योंकि इससे पहले अकाली दल बादल को पंथक मुद्दे उठाने में अग्रणी माना जाता रहा है।
शर्तों के कारण नहीं किया था शिअद से समझौता
इससे पहले अकाली दल बादल को पंथक और किसानी मुद्दों को व्यक्त करने वाला नेता माना जाता था, लेकिन रवनीत बिट्टू के उक्त बयान से पंथक सियासत में चर्चा शुरू हो गई है कि अकाली दल के हाथ से भाजपा इन मुद्दों को पूरी तरह से छीनने जा रही है। 2024 में अकाली दल बादल ने पंजाब में भाजपा के साथ इसलिए ही समझौता नहीं किया था और कई तरह की शर्तें रखी थीं, जिनमें बंदी सिंहों की रिहाई के अलावा किसानों के मुद्दे थे। अकाली दल ने कोर कमेटी की बैठक में कहा था कि अगर भाजपा इन मुद्दों पर सहमति बनाकर चलती है तो गठबंधन होगा। अकाली दल की कोर कमेटी की तमाम शर्तों को अब बिट्टू ने कैच कर लिया है।