महाकुंभ, अर्धकुंभ या फिर सिंहस्थ कुंभ के बाद नागा साधुओं को देखना बहुत मुश्किल होता है. कहते हैं नागा साधु बनने के लिए 10 से 15 साल तक कठिन तप और ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है और अपने गुरु को विश्वास दिलाना पड़ता है कि साधु बनने के लायक है उस दौरान किसी का भी मोह नहीं रखा जाना चाहिए.
आप सभी इस बात से वाकिफ हैं कि कुंभ मेला आस्था का पर्व है और श्रद्धालु पवित्र गंगा में डुबकी लगाकर अपने पापों और जन्म मरण के चक्र से मुक्ति पाते हैं. अगर बात करें हिन्दू पौराणिक कथाओं की तो उसके अनुसार, पृथ्वी पर केवल कुंभ मेला एक ही ऐसी जगह है, जहां आप अपने पापों से मुक्त हो सकते हैं और सभी पापों को धो सकते हैं. कहते हैं कुम्भ के मेले में नहाकर आप जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पा सकते हैं. जी हाँ, ऐसा माना जाता है कि कुंभ के दिनों में पवित्र गंगा के जल में डुबकी लगाने से मनुष्य और उसके पूर्वज दोषमुक्त हो जाते हैं.
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इसमें नहाने के बाद हर कोई नए वस्त्र धारण करता है और साधुओं के प्रवचन सुनता है. आप सभी को बता दें कि दो बड़े कुंभ मेलों के बीच एक अर्धकुंभ मेला भी लगता है और इस बार प्रयागराज में कुंभ मेला दरअसल, अर्धकुंभ ही है. जी हाँ, संगम तट पर ही ऋषि भारद्वाज का आश्रम है, जहां भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ वनवास के समय आकर रूककर गए थे इसी के साथ पुराने समय में शंकराचार्य और चैतन्य महाप्रभु भी कुंभ दर्शन को गए थे. इसी के साथ हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि कुंभ मेले में आने वाले नागा साधु सबके आकर्षण का केंद्र होते हैं.