किस दिन से होगी शारदीय नवरात्र की शुरुआत?

शारदीय नवरात्र के दौरान देवी दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो साधक इस दौरान (Shardiya Navratri 2024 Date) कठिन व्रत का पालन करते हैं और माता रानी की सच्ची श्रद्धा के साथ पूजा-अर्चना करते हैं उन्हें उनका पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ ही घर में शुभता का आगमन होता है।

शारदीय नवरात्र का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह त्योहार हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक माना जाता है, जिसमें लोग मां दुर्गा की विशेष पूजा करते हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी 3 अक्टूबर से होगी। वहीं, इसका (Shardiya Navratri 2024) समापन 11 अक्टूबर को होगा। ऐसा कहा जाता है कि इस शुभ घड़ी में मां की खास पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

साथ ही सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। वहीं, इस दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ भी परम कल्याणकारी माना गया है, जो इस प्रकार है।

।।दुर्गा चालीसा।।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

शंकर अचरज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपु मुरख मोही डरपावे॥

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जियऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com