किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं को राजनीतिक दलों, खासकर भाजपा पर दबाव बनाने की रणनीति में कामयाबी मिल गई है। हरियाणा में किसानों के आंदोलन की वजह से पार्टी को जो राजनीतिक नुकसान पहुंचा है, उसका ये नतीजा सामने आया है कि प्रदेश में सत्ताधारी दल होने के बावजूद पंचायत चुनाव टालने पड़ गए। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा है, पंचायत चुनाव के लिए अभी वातावरण ठीक नहीं है। दबाव के जो विषय चल रहे हैं, उससे लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन होता है।
संयुक्त किसान मोर्चे के वरिष्ठ सदस्य हन्नान मौला के अनुसार, किसान आंदोलन से भाजपा को बड़ा राजनीतिक नुकसान होने जा रहा है। केवल हरियाणा या पंजाब में ही नहीं, बल्कि दूसरे प्रदेशों में भी इस पार्टी को किसानों की भारी नाराजगी झेलनी पड़ सकती है।
हन्नान मौला कहते हैं, भाजपा ने यह सोचकर किसान आंदोलन को गंभीरता से नहीं लिया कि ये तो दो-ढाई प्रदेशों का आंदोलन है। कुछ दिन बाद किसान वापस लौट जाएंगे। केंद्र सरकार और भाजपा को अब यह अहसास हो रहा है कि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की यह मुहिम देशव्यापी हो चली है। किसान संगठनों के नेता राकेश टिकैत दूसरे प्रदेशों में जाकर किसान महापंचायत और रैलियां कर रहे हैं। उनकी तर्ज पर अब दूसरे राजनीतिक दल भी किसान महापंचायत करने लगे हैं।
हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल की सरकार को जजपा का समर्थन हासिल है। इसके अलावा कुछ निर्दलीय विधायक भी उन्हें समर्थन दे रहे हैं। पिछले साल भाजपा एक विधानसभा उपचुनाव और कई सीटों पर निगम चुनाव हार चुकी है। किसान आंदोलन के कारण प्रदेश में ऐसी स्थिति बन गई है कि भाजपा सरकार के मंत्रियों और दूसरे नेताओं को जनता के बीच जाने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
हरियाणा में पंचायतों का कार्यकाल 23 फरवरी को समाप्त हुआ है, लेकिन किसान आंदोलन के चलते भाजपा सरकार चुनाव कराने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही। सरकार का मानना है कि अभी प्रदेश में चुनाव के लिए अनुकूल माहौल नहीं है। जब माहौल ठीक होगा तो चुनाव करा दिए जाएंगे।
एआईकेएससीसी के वरिष्ठ सदस्य अविक साहा कहते हैं, आंदोलन के साथी पहले भी केंद्र सरकार को चेता चुके हैं कि वह किसान आंदोलन को दो-ढाई प्रदेशों का आंदोलन समझने की भूल न करे। अब किसान संगठन, महापंचायतों का पड़ाव पार कर चुके हैं। पांच राज्यों, जहां पर विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, वहां बड़ी रैलियां कर लोगों को भाजपा की हकीकत बताई जाएगी। भाजपा ने किस तरह से किसानों के साथ छलावा किया है, यह तस्वीर लोगों के सामने रखेंगे।
संयुक्त किसान मोर्चे के योगेंद्र यादव कहते हैं, सरकार बहुत कुछ समझ रही है। उसे लगता है कि पहले पांच राज्यों का चुनावी नतीजा मिल जाए, उसके बाद किसानों से बात कर लेंगे। अगर जीत मिली, तो सरकार अपना अड़ियल रुख जारी रखेगी। हार हुई तो उसे किसानों की सारी मांगें माननी पड़ेंगी।
मैं बताना चाहूंगा कि किसान आंदोलन अब ऐसी अवस्था की तरफ बढ़ रहा है, जिसमें राजनीति बदल जाएगी। सरकार को जिद छोड़नी होगी। भाजपा, किसानों की बात मानेगी, लेकिन भारी राजनीतिक नुकसान उठाने के बाद उसे आंदोलन का विशाल स्वरुप समझ में आएगा।