कितने तरह के होते हैं तिलक, क्या है इनका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

किसी भी पूजा, धार्मिक कार्य, यज्ञ या अनुष्ठान की शुरुआत की जा रही हो या किसी शुभ काम से आप घर से निकल रहे हों। माथे पर तिलक जरूर लगाया जाता है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।

शुभ काम में जाने से पहले तिलक इसलिए लगाया जाता है, ताकि सकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के साथ रहे। माथे पर लगाया जाने वाला तिलक हिंदू धर्म में आस्था और संस्कृति का प्रतीक है।

इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि माथे में दोनों भौंहों के बीच में जिस स्थान पर तिलक लगाते हैं, वहां आज्ञा चक्र स्थित होता है। योग और ध्यान करे वाले आज्ञा चक्र के महत्व के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं।

मुख्य रूप से तीन तरह के होते हैं तिलक
यही वह स्थान है, जहां से हमारी बुद्धि, विवेक, प्रज्ञा और आध्यात्मिक ऊर्जा जाग्रत होती है। यहां चंदन का तिलक इसलिए लगाते हैं, ताकि यह मस्तिष्ठक को ठंडा रखे। तिलक मजह एक एक साधारण चिह्न नहीं, बल्कि इसके पीछे का पूरा विज्ञान है।

तिलक को मस्तक के अलावा, कंठ, दोनों भुजाओं, छाती और नाभि पर भी लगाया जाता है। यूं तो तिलक के प्रकारों की कोई गिनती नहीं है। उदाहरण के लिए विष्णु तिलक को लगाने के दर्जनों तरीके हैं। मगर, मुख्यरूप से तीन तरह के तिलक होते हैं। चाहे शिव का तिलक हो, विष्णु तिलक हो, या ब्रह्म तिलक हो सभी का अपना आध्यात्मिक महत्व है।

इन तीन तरह के होते हैं तिलक
भगवान विष्णु के अनुयायी जो भगवान विष्णु और उनके अवतारों श्री राम, श्रीकृष्ण, प्रभु नरसिंह, वामन देव आदि की पूजा करते हैं, वो वैष्णव तिलक वह लगाते हैं।

भगवान शिव के उपासक शैव तिलक वह लगाते हैं। सात्विक और गृहस्थ से लेकर तांत्रिक तक शैव तिलक अर्थात त्रिपुंड लगाते हैं।
वहीं, ब्रह्म तिलक अधिकतर मंदिर के पुजारी या ब्राह्मणों द्वारा लगाया जाता है। इसके अलावा, ब्रह्म देव की पूजा-आराधना करने वाले गृहस्थी भी ब्रह्म तिलक धारण करते हैं।

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