देव दिवाली का त्योहार 12 नवंबर को काशी में धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दिन देव दिवाली का प्रदोष काल मुहूर्त 5 बजकर 11 मिनट से शुरु होकर 7 बजकर 48 तक रहेगा। धार्मिक दृष्टि से यह पर्व हिन्दुओं के लिए महत्वपूर्ण है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, यह पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, ऐसी कहा जाता है कि आज ही के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था।

त्रिपुरासुर को ब्रह्मा जी द्वारा यह वरदान प्राप्त था कि उसे देवता, स्त्री, पुरुष, जीव ,जंतु, पक्षी या कोई निशाचर नहीं मार सकता है। इसलिए शिवजी ने अर्धनारीश्वर का रूप लेकर उसका वध किया और देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। इसी ख़ुशी में देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन शिव की नगरी काशी में दीप जलाकर दिवाली मनाई थी। उन्होंने यहाँ दीप दान भी किया। कहते हैं कि आज के दिन काशी में देवताओं का आगमन होता है।
मान्यता के अनुसार यह कहा जाता है कि आज के दिन यहाँ दीप दान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन पितरों के निमित्त दान-पुण्य एवं तर्पण करने का विधान है।
कार्तिक पूर्णिमा को स्नान अर्घ्य, तर्पण, जप-तप, पूजन, कीर्तन एवं दान-पुण्य करने से स्वयं भगवान विष्णु पापों से मुक्त करके उनकी शुद्धि कर देते हैं।
देव दिवाली की खास बात ये है कि यह त्योहार काशी में ही मनाया जाता है। इसके पीछे धर्म नगरी काशी का पौराणिक और धार्मिक महत्व है। बनारस के घाटों को रौशनी से सजाया जाता है, जगमगाते घाटों को देखने देश-विदेश से यहाँ लाखों श्रद्धालु आते हैं।
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