काम का टेंशन और मोबाइल बना रहा मानसिक रोगी, इन बातों का जरूर रखें ध्यान…

काम व टेंशन की वजह से देश की 80 फीसद महिलाएं तथा 43 फीसद पुरुष मानसिक बीमारी के शिकार हो चुके हैं। हैरानीजनक बात यह सामने आई है कि अधिकतर लोग अपनी बीमारी को छिपाकर रखते हैं। आगे जाकर यही बीमारी उनके लिए घातक सिद्ध होती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि वर्तमान स्थिति के मुताबिक खेल मैदानों में खेलने वाले खिलाड़ियों की संख्या काफी कम हो चुकी है।

नई पीढ़ी केवल मोबाइल पर ही गेम खेलकर मनोरंजन करती है। उन्हें इतना नहीं पता कि मोबाइल उनके लिए मानसिक रोग पैदा कर रहा है। पढ़ाई के अलावा बच्चे मोबाइल पर लगे रहते हैं। इन बच्चों ने वर्तमान में मोबाइल को अपना स्टेट्स सिंबल बना लिया है। वक्त के मुताबिक पेरेंट्स भी इन बच्चों के आगे बेबस हो चुके हैं।

सिविल अस्पताल के सीनियर मेडिकल अधिकारी डॉ. संजीव भल्ला ने बताया कि अस्पताल में उनके पास प्रतिदिन मानसिक रोगी चेकअप करने के लिए आ रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादातर बच्चे हैं। कारण अधिकतर समय मोबाइल में लगे रहना। इससे उनकी स्मरण शक्ति कमजोर हो रही है। बच्चों के दिमाग पर असर पड़ रहा है। कई घातक बीमारियों के वे शिकार हो रहे हैं। कई बच्चे ऐसे हैं जिन्हें मानसिक बीमारी की सारी उम्र के लिए दवाई लग चुकी है।

उधर, 80 फीसद महिलाओं में कुछ महिलाएं यौन उत्पीड़न से ग्रस्त हैं। अब वे भी मानसिक रोगी हो चुकी हैं। उनके व्यवहार में बदलाव आ गया है। हमेशा चुप रहती है। उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगता। विशेषज्ञों के अनुसार इस तरह की महिलाएं ठीक हो सकती हैं, लेकिन उसके लिए इलाज करवाना बहुत जरूरी है। ठीक समय पर दवाई ली जाए, तो कुछ वक्त बाद ये महिलाएं ठीक हो जाती हैं। इसी तरह 43 फीसद पुरुष अपने वरिष्ठ अधिकारियों की डांट व काम के बोझ कारण मानसिक रोगी बन चुके हैं।

बीमारी ठीक करने के लिए साधु-संतों के चक्कर में न पड़े

एसएमओ डॉ. संजीव भल्ला ने लोगों से अपील करते कहा कि वे कभी रोग के मामले में साधु-संतों के चक्कर में न पड़ें। अगर उनको मानसिक बीमारी है तो सीधे उनके साथ संपर्क किया जाए।

कौन से हैं कारण

विशेषज्ञों के अनुसार इनमें कई ऐसे केस हैं जिन्हें जन्म से ही मानसिक बीमार है। कोई बड़ी बात नहीं है। इसका पूरी तरह इलाज है। चिकित्सक को दिखाकर समय पर इलाज शुरू कर दिया जाए तो जल्द ठीक हो सकता है। कई बार इंसान की हालात उसे मानसिक रोगी बना देता है। अचीवमेंट हासिल करने के लिए व्यक्ति सबकुछ भूल बैठता है। दिनरात काम करने लग पड़ता है। डाइट व नींद टाइम पर न लेने से उक्त व्यक्ति मानसिक रोगी हो जाता है। कुछ अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाई में हर बार नंबर वन पोजीशिन हासिल करने के लिए जोर डालते है। बच्चा प्रेशर में आ जाता है। परिणामस्वरूप मानसिक रोगी हो जाता है। स्कूल, कॉलेज, मोहल्लों के पार्क में खेलकूद खत्म होना भी बड़ा कारण है बच्चों में मानसिक रोग की बीमारी।

ऐसे करें बचाव

डॉ. संजीव भल्ला का कहना है कि मानसिक बीमारी से बचने के लिए बच्चों को खेल रखवाकर देनी चाहिए। बच्चे खेलेंगे तो उनका मानसिक विकास होगा। वे हर प्रकार से तंदुरुस्त रहेंगे। कभी अभिभावक अपने बच्चों को किसी तरह से कंपेल न करें। ऐसे में बच्चा प्रैशराइज हो जाएगी। बाद में वह मानसिक रोगी का शिकार हो जाएगा। उन्होंने बताया कि अगर किसी को मानसिक रोग है तो वे अस्पताल जाकर अपना इलाज करवाएं।

स्कूलों में काउंसलिंग शुरू

डॉ. भल्ला ने बताया कि बच्चों में मानसिक रोग के केस बढ़ने से स्कूलों में उनकी टीम बच्चों का प्रति सप्ताह काउंसलिंग करने जा रही है। बच्चों को समझाया जा रहा है कि उनके लिए क्या उचित है और क्या करना चाहिए।

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