दक्षिणी राजस्थान के मेवाड़-वागड़ क्षेत्र की पांच लोकसभा सीटों पर सोमवार को मतदान हो रहा है। जिसमें से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित उदयपुर, सामान्य वर्ग की चित्तौडग़ढ़, राजसमंद और भीलवाड़ा लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला तय है।जबकि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट पर आजादी के बाद पहली बार त्रिकोणीय मुकाबला होने जा रहा है।
यहां भाजपा और कांग्रेस को गत विधानसभा चुनाव के दौरान उदय होने वाली भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) चुनौती देती दिख रही है। इस बार राजसमंद सीट सबसे अधिक चर्चा में हैं। जहां से जयपुर राजघराने की सदस्या दीयाकुमारी चुनाव मैदान में हैं। चुनाव का शोर थमने से पहले भाजपा, कांग्रेस और बीटीपी प्रत्याशी ने अपनी-अपनी जीत के दावे जताए। हम बताते हैं कि कहां किन दलों या प्रत्याशियों के बीच मुख्य मुकाबला है।
उदयपुर लोकसभा (अनुसूचित जनजाति)
उदयपुर लोकसभा सीट जब तक सामान्य वर्ग की रही, यह सबसे चर्चित रही। साल 2009 में परिसीमन के बाद यह आरक्षित हो गई। इसके बाद इसकी चर्चा कम होने लगी। हालाांकि यहां से कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य रघुवीरसिंह मीणा के चुनावी मैदान में होने से इसकी चर्चा देश भर में है। उनका मुकाबला भाजपा के मौजूदा सांसद अर्जुनलाल मीणा से है।
यहां से नौ उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस के रघुवीरसिंह मीणा के सामने जीत की सबसे बड़ी चुनौती है। उनकी हार इस बार भारी पड़ सकती है। हार के बाद जहां उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी से बाहर निकाला जा सकता है। साथ ही उनका राजनीतिक भविष्य इस सीट के परिणाम से तय होगा। सलूम्बर विधानसभा से मिली हार के
बाद वह पूरी तरह सक्रिय हैं, जबकि मौजूदा सांसद अर्जुन लाल मीणा का कहना है कि मोदी को प्रधानमंत्री बनाना है तो भाजपा प्रत्याशियों को चुनना होगा। दोनों ही प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं लेकिन में वह अंदर से डरे हुए भी हैं।
राजसमंद लोकसभा
इस बार मेवाड़ की सबसे चर्चित लोकसभा सीट राजसमंद रही। भाजपा यहां जयपुर राजघराने की सदस्या दीयाकुमारी को टिकट देकर इस सीट को चर्चा में लेकर आई, जिनका मुकाबला कांग्रेस के देवकीनंदन गुर्जर (देवकी काका) से है। यूं तो यहां से दस प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। मेवाड़ में दीयाकुमारी जहां सबसे कम उम्र की लोकसभा प्रत्याशी है, वहीं देवकीकाका राज्य में सबसे उम्रदराज प्रत्याशी हैं। मौजूदा सांसद हरिओमसिंह राठौड़ के चुनाव लडने से इनकार किए जाने के बाद भाजपा ने काफी सोच-विचारकर दीयाकुमारी को प्रत्याशी बनाया। शुरुआत में उनका विरोध यहां देखा गया लेकिन टिकट मिलने और जनसंपर्क के बाद उनके विरोध के स्वर थम गए।
राजसमंद में 19 लाख 9 हजार 339 मतदाता हैं जिनमें से पच्चीस फीसदी से अधिक मतदाता राजपूत रावत समाज के हैं। राजपूत समाज ने टिकट मिलने से पहले दीयाकुमारी का विरोध किया लेकिन बाद में स्थिति बदल गई। यहां भाजपा राष्ट्रवाद को लेकर चुनाव मैदान में हैं वहीं कांग्रेस को अपने परंपरागत वोटों से उम्मीद बंधी हुई है। यह सीट राजसमंद के अलावा चित्तौडग़ढ़, नागौर और उदयपुर जिले को भी प्रभावित करती है।
चित्तौडग़ढ़ लोकसभा
मेवाड़ की राजधानी रही शौर्य की इस भूमि से इस बार दस प्रत्याशी मैदान में हैं। हालांकि मुख्य मुकाबला भाजपा के मौजूदा सांसद सीपी जोशी का कांग्रेस के प्रत्याशी गोपालसिंह ईडवा से है। गोपालसिंह राजसमंद से लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। मेवाड़ में जहां सबसे कांटे की टक्कर मानी जा रही है वह चित्तौडग़ढ़ लोकसभा है। मौजूदा सांसद सीपी जोशी की अपनी पहचान हैं और वह पूरे पांच साल क्षेत्र में सक्रिय रहे, वहीं गोपालसिंह ईडवा चित्तोैडग़ढ़ लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी रहे हैं। ईडवा शेखावत परिवार के सदस्य हैं और राजपूतों के समर्थन को लेकर आश्वस्त हैं। वहीं भाजपा संसद जोशी का कहना है कि वह बाहरी हैं। इस क्षेत्र में जनता सेना समर्थकों की संख्या अच्छी खासी है लेकिन इस बार उसने सीधे चुनाव मैदान में प्रत्याशी नहीं उतारा लेकिन जनता सेना के सुप्रीमो रणधीरसिंह भींडर की नाराजगी भाजपा प्रत्याशी जोशी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है।
भीलवाड़ा लोकसभा
मेवाड़ में शामिल अजमेर संभाग की भीलवाड़ा लोकसभा सामान्य सीट है। यहां भाजपा ने मौजूदा सांसद सुभाष बहेडिय़ा को चुनाव मैदान में उतारा है, वहीं कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी के नजदीकी रामपाल शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। यूं तो बहेडिय़ा के खाते में कोई बड़ा काम नहीं है लेकिन यहां भाजपा चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ रही है। जबकि कांग्रेस रामपाल शर्मा को विकास पुरुष बताकर चुनावी समर में जुटी रही। पेयजल को लेकर ग्रस्त भीलवाड़ा को चंबल का पानी लाने का श्रेय कांग्रेस भुनाने में जुटी है। डॉ. सीपी जोशी के संसदीय कार्यकाल में भीलवाड़ा को चंबल का पानी मिला और तब रामपाल शर्मा भीलवाड़ा नगर विकास न्यास के चेयरमैन थे।
बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट
वागड़ के हिस्से में आने वाली इकलौती बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। यहां दो जिलों में अस्सी फीसदी से अधिक मतदाता आदिवासी समुदाय से हैं। आजादी के बाद पहली बार इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होने जा रहा है। यहां भाजपा और कांग्रेस को बीटीपी चुनौती देती दिखाई दे रही है। भाजपा ने यहां से मौजूदा सांसद मानशंकर निनामा का टिकट काटते हुए पूर्व राज्यमंत्री कनकमल कटारा को टिकट दिया, जबकि कांग्रेस ने डूंगरपुर के ताराचंद भगोरा को परम्परागत रूप से तीसरी बार चुनाव मैदान में उतारा है। कांग्रेस यहां एक बार बांसवाड़ा और एक बार डूंगरपुर से प्रत्याशी उतारती आई है। भगोरा इससे पहले दो बार सांसद रह चुके हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान गठित बीटीपी ने यहां दो विधानसभाओं पर जीत दर्ज कर अपनी ताकत का अहसास कराया और संसदीय चुनाव में कांतिलाल रोत को मैदान में उतारा। बीटीपी के बढ़ते प्रभाव से यहां कांग्रेस पिछड़ती दिखाई पड़ रही थी लेकिन राहुल गांधी की बेणेश्वर धाम में सभा के बाद वह आदिवासी मतदाताओं को कुछ हद तक साधने में सफल रहे।