कभी टाइगर के लिए चर्चित रहे इंद्रावती टाइगर रिजर्व (आइटीआर) में बीते दस वर्षों से टाइगर के दर्शन नहीं हुए हैं। साल दर साल नेशनल टागगर कंजर्वेशन अथारिटी (एनटीसीए) को फर्जी आंकड़े भेजे जाते रहे। एनटीसीए कैमरे की तस्वीरों और वीडियो के बिना भेजी गई जानकारी को संज्ञान में नहीं लेता मगर यहां हर बात का बहाना नक्सलवाद होता है।
नक्सली खतरे का हवाला देकर कागजों में टाइगर की मौजूदगी कुछ साल तो चली लेकिन आखिरकार 2018 में एनटीसीए ने आइटीआर का फंड रोक दिया। इसकी जानकारी भी आइटीआर के अफसरों ने सार्वजनिक नहीं होने दी। मजे की बात तो यह है कि जिस आइटीआर में एक भी टाइगर नहीं बचा है वहां एक लिपिक बचे हुए हैं।
वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी उक्त लिपिक की सेटिंग से हैरान हैं। प्रमोशन के बावजूद कुर्सी न छोड़ने वाले बाबू से उसी दफ्तर के अन्य लिपिक परेशान हैं। वे कुर्सी छोड़ें तो दूसरों को मौका मिले। आइटीआर में मुख्य लिपिक की कुर्सी इतनी मलाईदार मानी जाती है कि बाबू उसे किसी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहते हैं।
बीजापुर जिले में स्थित इंद्रावती टाइगर रिजर्व करीब तीन हजार वर्ग किमी में विस्तृत है। यह देश का तीसरा सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है। टाइगर संरक्षण के नाम पर यहां करोड़ों का बजट आवंटित होता रहा। यहां पदस्थापना के लिए वन विभाग के अफसर और कर्मी हर तरह का जुगाड़ लगाते हैं।
हालांकि जितना जुगाड़ आइटीआर के मुख्य लिपिक करण सिंह मतराम का है उतना अन्य किसी का नहीं है। 1983 में इंद्रावती टाइगर रिजर्व की स्थापना हुई और इसके कुछ साल बाद से मतराम यहां लिपिक बने हुए हैं। उनका दो बार प्रमोशन हुआ पर हर बार वे अफसरों से जुगाड़ लगाकर वापस बीजापुर लौट आए।
उसी कुर्सी पर मुख्य लिपिक तक प्रमोट होने के बाद अब वह प्रमोशन लेने से इंकार कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि अगर वे लेखाधिकारी बनना कबूल कर लेंगे तो उन्हें बीजापुर से हटना पड़ेगा। बताया जाता है कि आइटीआर में टाइगर की गणना कागजों में करवाने के माहिर मतराम ही हैं।
गणना कभी हुई नहीं जबकि एनटीसीए को रिपोर्ट हर साल भेजी जाती रही। 2009 में आइटीआर को देश के तीसरे सबसे बड़े टाइगर रिजर्व का दर्जा मिला और 2018 में एनटीसीए ने फंड रोक दिया। हालांकि एनटीसीए के अलावा भी यहां करोड़ों का फंड आता है।
एनटीसीए आइटीआर में टाइगर की मौजूदगी के जो साक्ष्य भेजे जाते उसे नकारता रहा लेकिन फिर भी काम चलता रहा। दस साल से यहां किसी ने टाइगर नहीं देखा है। टाइगर की मौजूदगी के कोई वैज्ञानिक साक्ष्य भी नहीं मिले हैं। हालांकि कागजों में काम अब भी चल ही रहा है।