स्नान एक ऐसा नित्यक्रम है जिसे करने के बाद हर व्यक्ति खुद को स्वच्छ महसूस करता है. आधुनिक युग में स्नान करने की क्रिया में काफी बदलाव आया है. पहले जहां लोग खुले में, नदी में, तालाब में स्नान किया करते थे वही अब स्नान करने के लिए आधुनिक स्नान घर बनवा रहे हैं, जो पूरी तरह गोपनीय बने रहते हैं. हम में से अधिकतर लोग पूरे कपड़े उतार कर स्नान करना पसंद करते हैं जो कि स्वाभाविक है और आम बात है. लेकिन पद्मपुराण में निर्वस्त्र होकर स्नान करना वर्जित माना गया है और साथ ही इसके कई नुकसान भी बताए गए हैं.
पद्मपुराण में निर्वस्त्र होकर नहाना वर्जित है
इस पुराण में उल्लेखित एक कथा अनुसार
भगवान श्री कृष्ण गोपियों को खुले में निर्वस्त्र होकर स्नान करने के विषय में ज्ञान देते हैं. पद्मपुराण में चीर हरण की कथा का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि गोपियां अपने वस्त्र उतार कर स्नान करने जल में उतर जाती थीं. भगवान श्री कृष्ण अपनी लीला से गोपियों के वस्त्र चुरा लेते थे और जब गोपियां वस्त्र ढूंढती थी तब उन्हें नहीं मिलते थे.ऐसे समय में श्री कृष्ण कहते हैं तुम्हारे वस्त्र वृक्ष पर हैं, पानी से निकलो और वस्त्र ले लो.
निर्वस्त्र होने के कारण गोपियां जल से बाहर आने में
अपनी असमर्थता जताते हुए कहती हैं कि वह निर्वस्त्र हैं और ऐसे में वह जल से बाहर नहीं आ सकतीं. साथ ही वह कहती हैं जब वह नदी में स्नान करने आईं तो उस समय यहां कोई नहीं था. इस बात पर श्री कृष्ण ने कहा कि ऐसा तुम्हे लगता है कि यहां कोई नहीं था लेकिन मैं तो हर पल, हर जगह मौजूद होता हूं. आसमान में उड़ते पक्षियों, ज़मीन पर चलने वाले जीवों और जल में मौजूद जीवों ने भी तुम्हे निर्वस्त्र देखा. इतना ही नहीं, जल में नग्न होकर प्रवेश करने से जल रूप में मौजूद वरुण देव ने भी तुम्हे नग्न देखा. यह उनका अपमान है. आपकी नग्नता आपको पाप का भोगी बनाती है.
क्या लिखा है गरुड़पुराण में
गरुड़पुराण में बताया है कि स्नान करते वक़्त
आपके पितर यानी आपके पूर्वज आपके आस-पास होते हैं और वस्त्रों से गिरने वाले जल को ग्रहण करते हैं, जिनसे उनकी तृप्ति होती है. निर्वस्त्र स्नान करने से पितर अतृप्त होकर नाराज़ होते हैं जिनसे व्यक्ति का तेज, बल, धन और सुख नष्ट हो जाता है. पितर यदि नाराज़ हो जाएं तो उसका दुष्प्रभाव भी बहुत भयानक होता है. इसलिए कभी भी निर्वस्त्र होकर नहीं नहाना चाहिए.