देशभर में ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण को लेकर प्राधिकरणों की ओर से प्रभावी कदम न उठाए जाने और ठोस कार्ययोजना न होने पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सख्त नाराजगी जाहिर की है।
प्रधान पीठ ने कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को विभिन्न शहरों में ध्वनि प्रदूषण वाले अलग-अलग स्थानों की पहचान कर न सिर्फ खाका तैयार करना चाहिए बल्कि ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए उपायों की कार्ययोजना भी तैयार करनी चाहिए। देश के सभी राज्यों के मुख्य सचिव इस कार्ययोजना को तैयार कर सीपीसीबी और एनजीटी में दाखिल करें।
जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण और उपाय न किए जाने के कारण प्रत्येक नागरिक की सेहत खतरे में है। खासतौर से नवजात और बुजुर्गों पर इसका सबसे ज्यादा विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। ध्वनि प्रदूषण न सिर्फ हमारी नींद और आराम में खलल डालता है बल्कि यह अध्ययन और अन्य सभी जरूरी कामों में भी बाधा पैदा करता है।
पीठ ने सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों को प्रदूषण निगरानी के लिए तीन महीनों में ध्वनि प्रदूषण निगरानी उपकरणों को अपनाने और उन्हें लगाने का आदेश दिया है। पीठ ने गौर किया कि सीपीसीबी ने देश के सात शहरों में ध्वनि प्रदूषण पर निगरानी के लिए तंत्र विकसित किया है। पीठ ने कहा कि यह तंत्र पूरे देश में लागू होना चाहिए।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) को भी ऐसे निगरानी तंत्र के लिए प्रयास करना चाहिए। वहीं, पुलिस के सहयोग से सुधार के लिए कदम भी बढ़ाना चाहिए।
आदेश का उल्लंघन करने वाले पर हो कार्रवाई
पीठ ने कहा कि उपकरणों पर निर्णय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जरिये होना चाहिए। पीठ ने कहा कि पुलिस को अपने कर्मचारियों को भी ध्वनि प्रदूषण मापने वाले उपकरणों के लिए प्रशिक्षित करने का आदेश दिया है। पीठ ने कहा कि एक सख्त प्रोटोकॉल होना चाहिए, जिसके तहत आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
पीठ ने कहा कि सीपीसीबी इस संभावना पर भी काम कर सकता है कि ध्वनि उपकरण बनाने वाले से सलाह लेकर उपकरणों में ध्वनि मीटर भी लगाया जाए। ताकि मानकों से अधिक होते ही उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई की जा सके। सभी राज्यों के मुख्य सचिव ऐसी कार्ययोजना पर काम कर सीपीसीबी और एनजीटी में दाखिल कर सकते हैं। वहीं, सीपीसीबी ध्वनि प्रदूषण के लिए जुर्माने की राशि भी तय कर सकती है।