इस बार नवरात्रि 29 सितंबर 2019 से शुरू हो रही है. ऐसे में उत्तर भारत में इस त्यौहार की धूम पूरे नौ दिन तक रहती है और नवरात्रि में दक्षिण भारत में दुर्गा पूजा का त्यौहार छः दिन तक मनाया जाता है. कहते हैं दुर्गा पूजा पूर्णरुप से मां दुर्गा की आराधना का पर्व माना जाता है और दुर्गा पूजा में मां की अर्चना के लिए विशेष तौर पर वेश्यालय की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा की जाती है. आपको बता दें कि यह मूर्ति उतनी ही पवित्र मानी जाती है, जितनी पवित्र मां दुर्गा स्वयं है. ऐसे में बहुत कम लोग जानते है कि ऐसा क्यों किया जाता है? हम इस बात से वाकिफ है कि पूरी दुनिया में वेश्याओं को नीचा समझा जाता है, लेकिन फिर भी मां की प्रतिमा के निर्माण में अपवित्र स्थान की मिट्टी का प्रयोग करते हैं.
आज हम आपको बताने जा रहे हैं दुर्गा पूजा में आराधना के लिए बनने वाली विशेष प्रतिमा बनाने में किन चार वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है. इनमे सबसे पहली गंगा तट की मिट्टी, उसके बाद गौमूत्र, उसके बाद गोबर और फिर वेश्यालय की मिट्टी या किसी ऐसे स्थान की मिट्टी जहां जाना निषेध हो. कहते हैं पुराने समय में एक वेश्या मां दुर्गा की अन्नय भक्त थी उसे तिरस्कार से बचाने के लिए मां ने स्वयं आदेश देकर, उसके आंगन की मिट्टी से अपनी मूर्ति स्थापित करवाने की परंपरा शुरू करवाई. इसी के साथ ही उसे वरदान दिया कि बिना वेश्यालय की मिट्टी के उपयोग के दुर्गा प्रतिमाओं को पूरा नहीं माना जाएगा, इसी के साथ और भी है मान्यताएं.
*पहली मान्यता के अनुसार जब कोई व्यक्ति वेश्यालय में जाता है तो वह अपनी पवित्रता द्वार पर ही छोड़ जाता है. इसी के साथ भीतर प्रवेश करने से पूर्व उसके अच्छे कर्म और शुद्धियां बाहर रह जाती है, इसका अर्थ यह हुआ कि वेश्यालय के आंगन की मिट्टी सबसे पवित्र हुई, इसलिए उसका प्रयोग दुर्गा मूर्ति के लिए किया जाता है.
*दूसरी मान्यता है कि वेश्याओं ने अपने लिए जो जिन्दगी चुनी है वो उनका सबसे बड़ा अपराध है. वहीं वेश्याओं को इन बुरे कर्मों से मुक्ति दिलवाने के लिए उनके घर की मिट्टी का उपयोग होता है, मंत्रजाप के जरिए उनके कर्मों को शुद्ध करने का प्रयास किया जाता है.
*तीसरी मान्यता के अनुसार वेश्याओं को सामाजिक रूप से काट दिया जाता है, लेकिन इस त्यौहार के सबसे मुख्य काम में उनकी ये बड़ी भूमिका उन्हें मुख्य धारा में शामिल करने का एक जरिया है. ऐसे में नवरात्रि का पर्व माँ दुर्गा के नौ रूपों के पूजन के लिए मनाते हैं.