राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव भले ही चारा घोटाला के सिलसिले में जेल की सजा काट रहे हों, लेकिन बिहार की राजनीति में वे हमेशा चर्चा में रहते आए हैं। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर वे एक बार फिर चर्चा में हैं। उनसे जुड़ी एक नई किताब भी बाजार में आ गई है। यह मूल रूप से उनके भाषणों का संग्रह है। लालू उन चुनिंदा नेताओं में से हैं, जो चारों सदन (विधानसभा, विधान परिषद, लोकसभा और राज्यसभा) के सदस्य रह चुके हैं। किताब में इन्हीं सदनों में समय-समय पर दिए गए उनके चुनिंदा भाषण संग्रहित हैं। इसे भारत के राजनेता सीरीज के तहत मार्जिनलाइज्ड प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
भारत के राजनेता सीरीज के संपादक संदीप कमल कहते हैं कि अगले महीने की पांच तारीख को अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास हो रहा है। ऐसे समय में लालू प्रसाद की चर्चा महत्वपूर्ण हो जाती है।
लोकतंत्र में अफसरशाही की भूमिका सीमित रखने के पक्षधर
किताब ने लालू प्रसाद के भाषण का वह अंश भी है, जिसमें उन्होंने कहा है कि जब देवताओं और मुस्लिम पैगंबरों के बीच लड़ाई का कोई जिक्र नहीं है तो उनके नाम पर दोनों समुदायों में कटुता का माहौल क्यों बनाया जा रहा है। एक भाषण के जरिए यह बताने की कोशिश की गई है कि लालू प्रसाद लोकतंत्र में अफसरशाही की भूमिका को सीमित रखने के पक्षधर रहे हैं। वे संसद की सर्वोच्चता की वकालत करते हैं।
राज्यपाल का पद समाप्त करने की रखी थी मांग
1998 में लोकसभा में दिए गए लालू के उस भाषण का भी जिक्र है, जिसमें उन्होंने राज्यपाल का पद समाप्त करने की मांग की है। उनकी राय है कि राजभवनों का राजनीतिक इस्तेमाल होता है। सभी राज्यों में केंद्र के राजदूत रहेंगे तो राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित होगी।
सोनिया गांधी को विदेशी कहे जाने का किया था विरोध
एक भाषण में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को विदेशी कहे जाने का सख्त विरोध किया था। किताब में उस भाषण का भी अंश है।
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