आदिकाल से ही वृक्षों की पूजा होती रही है. पीपल, बरगद के वृक्षों को तो सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. वहीं विवाह की रस्मों का भी एक विशेष वृक्ष गूलर गवाह बनता है. आपको बता दें, गूलर के पेड़ की लकड़ी और पत्तियों से विवाह का मंडप बनता है. इसकी लकड़ी से बने पाटे पर बैठकर वर-वधू वैवाहिक रस्में पूरी करते हैं. जहां गूलर की लकड़ी और पत्ते नहीं मिलते हैं, वहां विवाह के लिए इस वृक्ष के टुकड़े से भी काम चलाया जाता है. यानि ये कहा जा सकता है कि इस पेड़ के बिना आपकी शादी ही अधूरी होगी.

हिन्दू समाज में कई पेड़ ऐसे हैं जिन्हें देवी देवताओं की तरह पूजा जाता है. कई बार इन पेड़ों को कई पूजा पथ में शामिल किया जाता है और उन्हें अहम स्थान दिया जाता है. ऐसे ही एक पेड़ के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं जिसके बिना यहां पर कोई शादी पूरी नहीं होती. जी हाँ, ये पेड़ कहीं और नहीं बल्कि हमारे ही देश में है. आइये जानते हैं उस पेड़ के बारे में जिसके बिना शादी हो ही नहीं सकती.
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बता दें, छत्तीसगढ़ में गूलर ‘डूमर’ के नाम से विख्यात है. साथ ही इसके वृक्ष और फल का भी विशेष महत्व है. पंडितों का कहना है कि गूलर का पेड़ अत्यंत शुभ माना गया है. पुराणों के अनुसार इसमें गणेशजी विराजमान होते हैं. इसलिए विवाह जैसी रस्मों में इसका खासा महत्व है. मंडपाच्छादन में इसके पेड़ों के लकड़ी और पत्तों के छोटे टुकड़े रखना जरूरी होता है. इसलिए यहां हर विवाह में इस पेड़ को शामिल किया जाता है यानि इसकी कोई भी वस्तु शादी में शामिल होती है जिसका उपयोग किया जा सके.
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