एक ऐसा देश जहां पर लोगो को रुलाने लिए आखिर क्यों रखे जा रहे हैं टीचर, जानकर जाओगे चौंक

आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे देश के बारे में जहां पर लोगो  को रुलाने के लिए टीचर  रखा जा रहा है .जी हां हम बात कर रहे हैं जापान की जापान  में दफ्तरों और स्कूलों में लोगों को रोने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. रोने की ट्रेनिंग देने के लिए यहां बाकायदा टीयर्स टीचर्स भी हैं.

खुशी और दुख के आंसुओं से तनाव घटता है. निप्पन मेडिकल स्कूल के प्रोफेसर जुंको उमिहारा कहते हैं, तनाव से लड़ाई में आंसू सेल्फ डिफेंस की तरह है.

पिछले 5 सालों से हाईस्कूल टीचर रहे हिदेफुी योशिदा खुद को नामिदा सेंसेई (टीयर्स टीचर्स) कहते हैं. वह देश भर में लोगों को रोने के फायदों के बारे में जागरुक कर रहे हैं.

योशिदा कहते हैं, तनाव कम करने में रोना, हंसने और सोने से भी ज्यादा असरदार है.

तोहो यूनिवर्सिटी में फैकल्टी ऑफ मेडिसिन की प्रोफेसर हिदेहो एरिता के साथ मिलकर योशिदा ने रोने के फायदों पर जागरुकता फैलाने के लिए 2014 में कैंपेन लॉन्च किए थे.

इसके बाद 2015 में जापान ने 50 या उससे ज्यादा कर्मचारी वाली कंपनियों के लिए स्ट्रेस चेक प्रोग्राम अनिवार्य कर दिया.

उसके बाद से योशिदा के पास कंपनियों और स्कूलों से ज्यादा बुलावा आने लगे हैं. पिछले कुछ वर्षों में वह सैकड़ों लेक्चर और ऐक्टिविटीज करा चुके हैं.

योशिदा के मुताबिक, यह जरूरी है कि रुलाने वाली फिल्मों का फायदा उठाया जाए या भावुक करने वाली किताबों, संगीत को आजमाया जाए. वह कहते हैं, अगर आप सप्ताह में एक बार रोते हैं तो आप तनावमुक्त जिंदगी जी सकते हैं.

जापान और कुछ दूसरे देशों ने हाल के कुछ वर्षों में मेंटल हेल्थ पर ध्यान देना शुरू किया है जबकि 1990 तक डिप्रेशन के मुद्दे पर खुले तौर पर ज्यादा चर्चा नहीं होती थी.

लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स 2016 की 8 देशों पर की गई स्टडी के मुताबिक, जापान के कर्मचारी अपने एंप्लॉयर्स से डिप्रेशन बात करने के मामले में बहुत पीछे हैं. यहां ओवरवर्किंग इतनी बड़ी समस्या है कि इसके लिए एक शब्द भी दिया गया है- कारोशी यानी ओवरवर्किंग की वजह से हुई मौत.

अगर हंसना सेहत के लिए अच्छा है तो रोना भी सेहत के लिए खराब नहीं होता है. हंसने के जितने फायदे हैं, उससे कम रोने के भी नहीं हैं. आंसू भी तीन प्रकार के होते हैं, रेफलेक्सिव, कंटीनिअस, इमोशनल. केवल इंसान ही तीसरी तरह से रो सकते हैं. इमोशनल क्राइंग बहुत ही फायदेमंद है.

अल्जाइमर रिसर्च सेंटर रीजन्स हॉस्पिटल फाउंडेशन के डायरेक्टर, विलियम एच फ्रे ने भी प्रतिभागियों को सैड मूवीज दिखाई. विलियम के मुताबिक, हम रोने के बाद इसलिए अच्छा महसूस करते हैं क्योंकि इससे तनाव के दौरान उत्पन्न हुए कैमिकल्स बाहर निकल जाते हैं. हमें ये तो नहीं पता कि ये केमिकल्स कौन से होते हैं लेकिन आंसुओं में एसीटएच होता है जो तनाव के दौरान बढ़ता है.

आंसू से आंखें होती है सुरक्षित-
बिना भावुक हुए रोने से भी सेहत को फायदे हैं. जब आप प्याज काटते हैं तो प्याज से एक रसायन निकलता है और आंखों की सतह तक पहुंचता है. इससे सल्फ्यूरिक एसिड बनता है. इससे छुटकारा पाने के लिए आंसू ग्रन्थियां आंसू निकालती हैं जिससे आंखों तक पहुंचा रसायन धुल जाता है. आंसुओं में लाइसोजाइम भी होता है जो एंटीबैक्टीरियल और एंटी वायरल होता है. ग्लूकोज से आंखों की सतह की कोशिकाएं मजबूत होती हैं.

 

 

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