उत्तराखंड में एक जगह ऐसी है जहां विदेश से मंगाए जा रहे कबाड़ में 555 मिसाइलें आ गई थीं। मामला उस समय सामने आया जब स्क्रैप को काटने के दौरान मिसाइल के ब्लास्ट होने पर श्रमिक की मौत हो गई। जिसके बाद फैक्ट्री प्रबंधन समेत पूरे उत्तराखंड में हलचल मच गई । 14 साल बाद अब सेना के जवान मिसाइलों को नष्ट कर रहे हैं। आखिर क्या है इसके पीछे की पूरी कहानी, आइए आपको बताते हैं।
2004 में स्क्रैप में आई थीं मिसाइलें
काशीपुर स्थित एसजी स्टील फैक्ट्री में 21 दिसंबर 2004 को स्क्रैप में 555 मिसाइलें आ गई थीं। इसका खुलासा तब हुआ जब स्क्रैप को काटने के लिए मशीन में लगाया गया। इस दौरान एक मिसाइल के जोरदार ब्लास्ट होने से वहां काम कर रहे मजदूर की मौत हो गई। बाद में हुई जांच में यहां से 67 बड़ी और 488 छोटी मिसाइलें मिली थीं। तब बताया गया था कि स्टील फैक्ट्री में विदेशों से भी स्क्रैप आता था। जिसके बाद से न सिर्फ काशीपुर बल्कि पूरे उत्तराखंड में हड़कंप मच गया था।
पतरामपुर पुलिस चौकी के पीछे दबाई गई थीं मिसाइलें
स्क्रैप से बरामद मिसाइलों को प्रशासन ने एहतियात के तौर पर जसपुर की पतरामपुर पुलिस चौकी के पीछे जमीन में दबा कर रख दिया था
2005 में आई थी एनएसजी
मिसाइलों को नष्ट करने के लिए 7 जनवरी 2005 में एनएसजी की टीम जसपुर पहुंची थी। लेकिन उस वक्त मिसाइलों को निष्क्रिय करने का पूरा सामान नहीं होने से यह काम रुक गया था। बाद में इन मिसाइलों को जसपुर की पतरामपुर चौकी के पास जमीन में दफ़न कर दिया गया था। तब से समय समय पर इन मिसाइलों को डिस्पोजल करने की मांग होती रही।
13 साल बाद स्वीकृत हुआ डिस्पोज करने का बजट
एसएसपी डॉ. सदानंद दाते ने पतरामपुर चौकी के पास दफ्न की गई मिसाइलों को डिस्पोजल करने संबंधी साजो-सामान खरीदने के लिए 4 दिसंबर 2017 को पुलिस मुख्यालय से पत्राचार किया। इसके बाद बजट स्वीकृत हुआ।
डिस्पोज करने को जुटाया ये सामान
इलेक्ट्रिक डेटोनेटर नंबर 33, इग्नाईटर सैफ्टी फ्यूज इलेक्ट्रिक, कार्ड डेटोनेटिंग (कोडैक्स) और टीएनटी स्लैब (सीई) का इंतजाम केन्द्रीय शस्त्र भंडार 31 वीं वाहिनी पीएसी रुद्रपुर से किया गया है। पीईके 4 किलो एटीएस हरिद्वार से मांगा गया है। वहीं सेफ्टी फ्यूज नंबर 11 को 31वीं वाहिनी पीएसी/ 46 वीं वाहिनी एटीएस हरिद्वार/आईआरबी प्रथम ने उपलब्ध कराया है।
फीका नदी किनारे नष्ट की गईं 220 मिसाइल
सेना के बम निरोधक दस्ते ने ‘ऑपरेशन 555 पतरामपुर’ के तहत शुक्रवार को दूसरे दिन जमीन में दबी 190 मिसाइल निकाली। इसके बाद दो दिन में खोदाई कर निकाली गई 220 मिसाइलों को फीका नदी के किनारे में नष्ट किया। इस दौरान आधा किमी क्षेत्र से लोगों को हटा दिया गया था। मौके पर अफसर भी मौजूद रहे।
गुरुवार को बाराबंकी से आई आर्मी के काउंटर एक्सप्लोसिव डिवाइस यूनिट के कैप्टन विकास मलिक एवं उनकी टीम ने जेसीबी की मदद से गहरे गड्ढे में दबीं 30 मिसाइलें निकाली थी। शुक्रवार को सेना के जवानों ने खोदाई जारी रखते हुए 190 अन्य मिसाइल निकालीं। जवान इन्हें डंपर में चौकी क्षेत्र से करीब साढ़े चार किमी दूर अमानगढ़ गेट स्थित फीका नदी के किनारे ले गए। वहां सेना से पांच गहरे गड्ढे बनाए थे। इस दौरान पूरा क्षेत्र डेंजर जोन घोषित था। दोपहर बाद करीब डेढ़ बजे कैप्टन मलिक के नेतृत्व में करीब सात सौ मीटर दूर से मिसाइलों को क्रमवार नष्ट किया गया। तेज धमाकों की आवाज दूर तक सुनीं गईं। कैप्टन विकास ने बताया कि जितनी भी मिसाइल निकाली जाएंगी, उन्हें रोजाना नष्ट कर दिया जाएगा।
इस दौरान एएसपी डॉ. जगदीश चंद्र, कोतवाल अबुल कलाम, एसआइ वीरेंद्रं सिंह, उप प्रभारी वनाधिकारी जसपुर, प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी काशीपुर भी मौके पर मौजूद रहे।
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