आखिर वही हुआ जिसका अंदेशा अलग – अलग लोगों द्वारा अलग – अलग कारणों से लगाया जा रहा था। बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती का छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की विरोधी पार्टी के साथ जाना भविष्य के हर चुनावी समझौते को यदि खारिज नहीं भी कर रहा तो भी उस पर एक सवाल तो खड़ा करता ही है। बसपा उत्तर प्रदेश का मजबूत दल है और कांग्रेस छत्तीसगढ़ का। भाजपा को हराने के लिए इन दोनों का साथ अधिक स्वाभाविक होता।
माना जा रहा है कि बसपा का अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के साथ मेल वहां की दस आरक्षित सीटों को सीधे प्रभावित करेगा जबकि 14 अन्य सीटों पर भी यह असर डाल सकता है। यह संख्या 90 सीटों वाले राज्य में बहुत अहम हो जाती है। हालांकि यह भी सच है कि छत्तीसगढ़ में बसपा का प्रदर्शन अभी तक औसत भी नहीं रहा है , इसलिए इस समझौते को निर्णायक नहीं माना जा सकता। जोगी के साथ मायावती का जाना उत्तर प्रदेश के लिए भी खास हो जाता है। जिस प्रदेश में कांग्रेस मजबूत है जब वह वहां उसके साथ नहीं गईं तो उत्तर प्रदेश में क्यों उसके साथ जाएगी ? जाती भी हैं तो शर्तें किसकी चलेंगी ?
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