पहाड़ाें में आजीविका का मुख्य साधन भेड़ पालन अब सिमट रहा है, ऊन का उत्पादन कम हो रहा है और इस ऊन के दम पर पनपने वाले कुटीर उद्योग अपने पैर जमा ही नहीं पा रहे हैं। हाल ये है कि एक समय में सबसे अधिक ऊन का उत्पादन करने वाले उत्तरकाशी में ही आठ गुना ऊन उत्पादन कम हो गया। ऊन का प्रयोग केवल दरियां और कालीन बनाने तक ही रह गया है।

कभी पहाड़ों में हर घर में बुजुर्ग के हाथ में तकली घूमा करती थी। इनके हाथों से तकली गायब हो गई है। वर्तमान में प्रदेश के छह जिलों में करीब 17 हजार परिवार ही भेड़पालन व्यवसाय से जुड़े हैं। चारे की समस्या और ऊन के सही दाम न मिलने से भेड़ पालक भी पलायन कर रहे हैं। नई पीढ़ी को पुश्तैनी व्यवसाय अपनाने में रुचि नहीं है।
राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में किसी जमाने में लोगों की आजीविका का मुख्य साधन खेतीबाड़ी के साथ भेड़पालन था। समय बदलने के साथ ही पहाड़ों में भेड़पालकों की संख्या भी सिमट रही है। उच्च कोटी की गुणवत्ता न होने के कारण पहाड़ में तैयार हो रहा ऊन दरियां और कालीन बनाने में ही इस्तेमाल हो रहा है।
बड़ी टेक्सटाइल कंपनियां ब्रांडेड कपड़े बनाने के लिए इस ऊन को नहीं लेती हैं। जिससे भेड़पालकों को ऊन के सही दाम न मिलने से इस व्यवसाय जुड़े किसान परिवार अपना पुश्तैनी व्यवस्था छोड़ रहे हैं।
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