प्रत्येक माह की शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष में प्रदोष का व्रत आता है। ये उपवास भगवान शिव को समर्पित है। पुराणों के मुताबिक, इस उपवास को करने से लम्बी आयु का वरदान प्राप्त होता है। प्रदोष व्रत जब शनिवार के दिन पड़ता है उसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता हैं। शनि प्रदोष का उपवास करने वालों को भगवान शिव के साथ-साथ शनि की भी कृपा भी मिलती है। इस वर्ष का अंतिम शनि प्रदोष व्रत 12 दिसंबर को है।

शनि प्रदोष व्रत में शाम का वक़्त शिव पूजन के लिए अच्छा माना जाता है। इस दिन सभी शिव मन्दिरों में शाम के वक़्त प्रदोष मंत्र के जाप किए जाते हैं। शनि प्रदोष के दिन सूर्य उदय होने से पूर्व उठें तथा नहाके साफ वस्त्र धारण करें। गंगा जल से पूजा स्थल को शुद्ध कर लें। बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की आराधना करें। ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें तथा शिव को जल अर्पित करें। शनि की आराधना के लिए सरसों के तेल का दीया पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं। एक दीया शनिदेव के मंदिर में जलाएं। उपवास का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करें।
शनि प्रदोष उपवास को हिन्दू धर्म में काफी शुभ माना जाता है। शनि प्रदोष का उपवास करने वालों को भोले शंकर के साथ शनि देव का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। मान्यता है कि ये उपवास रखने वाले लोगों की सभी समस्यां दूर हो जाती हैं तथा मृत्यु के पश्चात् उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों के मुताबिक, प्रदोष के वक़्त भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं। इसी कारण लोग शिव जी को खुश करने के लिए इस दिन प्रदोष व्रत रखते हैं।
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