इस तरह प्रदूषण करता है, शरीर के हर हिस्से पर हमला

इस तरह प्रदूषण करता है, शरीर के हर हिस्से पर हमला

इस साल की शुरुआत में कोरोना वायरस के आतंक ने एक काम अच्छा किया और वह था प्रदूषण का स्तर बिल्कुल कम होना। महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन ने दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों की आबोहवा को तरोताज़ा कर दिया। यहां का वातावरण इतना साफ हो गया जो पिछले कई सालों में जद्दोजहद के बावजूद न हो सका था। ताज़ी हवा के 6-7 महीने बाद फिर साल का वह समय आ गया है, जिस दौरान दिल्ली में प्रदूषण का स्तर ख़तरनाक हो जाता है। धीरे-धीरे एक बाद फिर यहां प्रदूषण बढ़ रहा है।

यही नहीं दिल्ली और उसके आसपास फैलता ये ख़तरनाक प्रदूषण त्वचा से लेकर दिल की जानलेवा बीमारियों का कारण बनता है। दिल्ली सरकार भी प्रदूषण से बचने के लिए हर साल गाइडलाइन्स जारी करती है। आप ये तो जान गए होंगे कि इससे बचने के लिए क्या करना है और क्या नहीं लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रदूषण की जानलेवा तत्व अगर शरीर में घुस जाएं तो क्या होता है? ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि आखिर हमारे शरीर के हर हिस्से पर इस थकरनाक प्रदूषण का क्या असर पड़ता हैं।

एक शहर का एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (AQI) अगर 400 से ज़्यादा होता है तो उसमें कुछ देर भी लगातार रहने से भयानक घुटन महसूस होने लगती है। वहीं, इस वक्त दिल्ली और उसके आसपास के कई शहरों का AQI (Air Quality Index) 374 तक पहुंच चुका है। धीरे-धीरे ये स्तर बढ़ता जाएगा और इंसानों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। पिछले साल इस समय दिल्ली का AQI स्तर 999 था और इसी वजह से यहां हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दी गई थी। स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए थे। इस ख़तरनाक हवा से कई लोग बीमारियों की चपेट में आ रहे थे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि प्रदूषण न सिर्फ आपके फेफड़ों बल्कि शरीर के कई अंगों पर ख़तरनाक असर डालता है। ये प्रदूषण फेफड़ों की बामारी के साथ ही त्वचा और हार्ट अटैक जैसी जानलेवा बीमारियों का भी ज़िम्मेदार है।

  1. आंखों के रेटिना को बड़ा ख़तरा-

ज़्यादा देर प्रदूषण में रहने से आंखे लाल हो जाती हैं और साथ ही रेटिना पर खराब असर भी पड़ता है।

प्रदूषण से लगातार सिरदर्द की शिकायत रहती है जिससे आपकी आंखें कमज़ोर भी सकती हैं।

प्रदूषण से आंखों में ड्राइनेस की शिकायत भी बढ़ती है।

2. प्रदूषण से दमा होने का डर बढ़ जाता है

क्योंकि प्रदूषण सीधा फेफड़ों पर अटैक करता है इसलिए खासकर बच्चों के फेफड़ों के विकास पर सबसे अधिक असर पड़ता है। फेफड़ों का विकास कम होने लगता है और बच्चे बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। यह बीमारियां ज़िंदगी भर बनी रहती हैं।

वहीं, बुज़ुर्गों में फेफड़ों की क्षमता वैसे ही कम होती है। इसलिए वह फेफड़ों की बीमारी की चपेट में जल्दी आ जाते हैं।

जो महिलाएं एक्सरसाइज़ से दूर रहती हैं उनमें सूक्ष्म कण फेफड़ों के ज़रिए अंदर जाकर पाचन और हार्मोनल बैलेंस को प्रभावित करते हैं।

  1. बढ़ता है स्ट्रोक का भी ख़तरा

बच्चों के दिमाग में अगर प्रदूषण की वजह से ऑक्सीजन कम पहुंचेगी तो इससे दिमाग हमेशा के लिए प्रभावित हो सकता है। इस वजह से स्ट्रोक या फिर दिमागी बीमारी होने का डर होता है। इसके अलावा प्रदूषण की वजह से माइग्रेन की भी संभावना बढ़ जाती है।

इस प्रदूषण की वजह से बुज़ुर्ग भ्रम, भूलने, नींद न आना, तनाव, चिड़चिड़ापन के सबसे अधिक शिकार होते हैं।

गर्भवती महिला के बच्चे पर भी प्रदूषण का बेहद खराब असर पड़ सकता है और ग्रोथ रुक सकती है।

पुरुषों में भी दिमाग में एक बार खून के साथ प्रदूषक तत्व पहुंचे तो यह जीवन भर प्रभावित करते हैं। भूलने की बीमारी, ब्रेन हेमरेज का खतरा, ब्लड प्रेशर भी बढ़ जाता।

  1. डिहाइड्रेशन, डायरिया और पीलिया का रिस्क

प्रदूषण से बचने के लिए प्लांट्स लगाता एक युवक
गार्डन को हरा-भरा रखने के साथ प्रदूषण मुक्त वातावरण के लिए घर में जरूर लगाएं ये प्लांट्स

बच्चे के लीवर में प्रदूषक तत्व के पहुंचते ही सबसे पहले उसे उल्टियां शुरू होती हैं। इसके बाद उसे डिहाइड्रेशन, डायरिया और पीलिया जैसी बीमारियां भी होने का जोखिम बढ़ जाता है।

लीवर में प्रदूषक तत्व जाते ही पेट दर्द, डायरिया जैसी शिकायतें बढ़ जाती हैं। यदि महिला एनिमिक है और उसमें आयरन की कमी है तो वह अधिक जल्दी इसकी चपेट में आती है।

  1. बुजुर्गों में बढ़ता है हार्ट अटैक का ख़तरा

ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और ऐसे में बुज़ुर्गों में हार्ट अटैक का ख़तरा बढ़ जाता है।

यहां तक कि बच्चे भी दिल से जुड़ी बीमारियां का शिकार हो सकते हैं। उनके शरीर में प्रदूषक तत्व खून के ज़रिए दिल तक आसानी से पहुंच जाते हैं। जिसका असर उनके दिल पर पड़ता है।

इससे डिप्रेशन की परेशानी भी हो सकती है।

बच्चों के शरीर पर रेशेज़, खुजली और दाने आने की शिकायत होने लगती है। शरीर का जो हिस्सा खुला रहता है जैसे चेहरा, हाथ, गर्दन में लाल चकते आ जाते हैं।

  • बुज़ुर्गों की त्वचा नाज़ुक होती है इसलिए इन्हें रेशेज़ की समस्या ज़्यादा हो सकती है। प्रदूषण की वजह से बाल झड़ने की समस्या भी हो सकती है।

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