न्याय के लिए अदालत की व्यवस्था से सभी परिचित हैं जहां आरोपित पेश किए जाते हैं, सुनवाई होती है, दोष सिद्ध तो सजा अन्यथा रिहाई। अब इसी क्रम में यह कहा जाए कि एक अदालत ऐसी भी लगती है, जहां देवी-देवताओं की पेशी होती है …तो बेशक, आप हैरान रह जाएंगे
बस्तर के केशकाल में लगती है एक ऐसी अदालत, जहां देवी-देवताओं की पेशी होती है। जज की भूमिका में होती हैं बारह मोड़ वाली सर्पीली केशकाल घाटी के ऊपर मंदिर में विराजित भंगाराम देवी। प्रार्थी के रूप में मौजूद श्रद्धालुओं की शिकायतों के आधार पर देवी-देवताओं को निलंबन, मान्यता समाप्ति से लेकर सजा-ए-मौत तक का दंड सुनाया जाता है। आज शनिवार को एक बार फिर लगेगी यह अद्भुत अदालत, जुटेंगे हजारों लोग।
इसमें नौ परगना में फैले 55 राजस्व ग्रामों में विराजित तमाम देवी-देवता, लाठ, आंगा, छत्र, डोली आदि के रूप में यहां लाए जाते हैं। देवी-देवताओं को भी पक्ष रखने का मिलता है मौका गांव पर आपदा या विपत्ति अथवा पूजा- अर्चना के बाद भी जिंदगी में परेशानियां बनी रहने पर देवी-देवताओं को दोषी ठहराते हुए भंगाराम माई की अदालत में शिकायत की जाती है। देवी-देवताओं को भी अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है। उनके प्रतिनिधि के रूप में पुजारी, गायता, सिरहा, मांझी व मुखिया मौजूद रहते हैं।
सबसे पहले थाने में देनी होती है हाजिरी
भंगाराम माई के पास जाने से पहले भंगाराम सेवा समिति के सदस्य सभी देवी-देवताओं के प्रतीकों को थाने ले जाते हैं। वहां हाजिरी लगती है। थाने में तैनात जवान देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, फिर पुलिस की सुरक्षा में देवी-देवताओं को पूजा स्थल भंगाराम देवी मंदिर तक लाया जाता है।
बीमारी होने पर पूजे जाते हैं डॉक्टर खान
जानकार बताते हैं कि वर्षों पहले क्षेत्र में कोई डॉक्टर खान थे, जो बीमारों का इलाज पूरे सेवाभाव और नि:स्वार्थ रूप से करते थे। उनके नहीं रहने पर यहां के ग्रामीणों ने उन्हें देवता के रूप में स्वीकार कर लिया है, जो भंगाराम देवी मंदिर में विराजित हैं। क्षेत्र में किसी बीमारी का प्रकोप होने पर सबसे पहले इनकी ही पूजा की जाती है।