समय और संभावनाओं ने कोरोना संक्रमण जैसी वैश्विक महामारी में भी भारत की उत्सवप्रेमी जीवनधारा को अबाध रखा। यह सच है कि मन में डर के साथ हमने स्वयं को सामान्य रख परंपराओं को पुष्ट किया। राधा-कृष्ण के रास की छींटें होली के रंगीन स्वरूप में शामिल होने को फिर आतुर हैं और हम स्तब्ध यह सोच रहे हैं कि कैसे सावधानी के कवच के साथ संयमित होली खेलें।
प्रतिक्षण प्रियजनों के साथ होने वाले विषैले अनुभवों के बाद भी कोरोना संक्रमण में हम रिश्तों को बढ़-चढ़कर निभाने में अद्भुत रहे। पिछले वर्ष के हर बीतते घंटे में सूचनाएं हम सभी को झकझोर रही थीं, पर सेवाभावी अपनों ने अपनत्व और इंसानियत की नई परिभाषाएं रचीं। समूचे विश्व में हमने अपने त्योहारों के माध्यम से यह संदेश दिया कि तकलीफें हमारी जीवटता से बड़ी नहीं हैं। नव वर्ष फिर बड़े त्योहार के साथ देहरी पर खड़ा है और हमारे चिंतन में होली की परंपराओं को योजनाबद्ध कर रहा है। यह समय दुविधा से बाहर आ संयमित हो रिश्तों को पुन: रंगने का है।
व्यवहार से विचार तक: रीटा एसोसिएट प्रोफेसर हैं। वह कहती हैं कि बदली हुई दुनिया से ताल मिलाना अब भी सहज नहीं है। ऐसे में होली जैसे त्योहार जहां भावनाओं के साथ शारीरिक निकटता भी होती है, उसमें कोविड-19 से बचने की कवायद कठिन है। हम खुलकर भावनात्मक और उल्लास की अभिव्यक्ति के प्रतीक हैैं और उस व्यवहार को मात्र विचार तक सीमित करना किसी साधना से कम नहीं, पर अपनी और परिवार की सुरक्षा सर्वोपरि है। यह ध्यान देने का विषय है कि इस उथल-पुथल में हम विचारों पर रोक न लगाएं और पूर्ण उत्साह के साथ होली शुभ हो जरूर बोलें।
सुगम से संयम तक: कोरोना संक्रमण के कारण परिदृश्य बदलने से पहले तक त्योहारों की शैली बड़ी बेबाक थी। हमने अपनी परंपराओं को सुगमता से निभाया। भावेश गुजरात के बड़े व्यापारी हैं। वह कहते हैं कि ऐसा दौर तो हमारे बड़ों ने भी शायद ही कभी देखा हो कि इतना बंधकर हमें उत्सवी होना है। यह सत्य है कि अब समस्त सुरक्षा नियमों का पालन हमें स्वयं में समाहित करना ही होगा। हालांकि इसका अर्थ यह नहीं है कि हम डिप्रेसिव या कंफ्यूजन में रहें। सावधानी का दौर सभी मानकों, नियमों और संसाधनों के साथ संयमित सुगमता सीखने का है।
वियोग से सुयोग तक: हृदय कांप उठता है, जब हम ध्यान में लाते हैं कि मानवता के विनाश की क्रूर लीला में हम बच चुके हैैं। प्रियजनों के विछोह और खुद के बचाव के बीच सब री-सेट करना ही होगा। उत्सव की स्मृतियां तो हैं, पर उन्हें पुन: जीवित करने का साहस बिखरा सा है। रिद्धिमा हैदराबाद में रहती हैं। वह कहती हैं कि हम उत्तर भारतीय लोग अल्हड़ता से होली खेलते हैं। हास-परिहास हमारे संवादों का हमेशा से अंग रहा है। बचपन की होली मन में बसी है, पर कोरोना संक्रमण के काल में सिर्फ और सिर्फ औपचारिकता है।
शेष के लिए यह विशेष होली है। सकारात्मकता हमें प्रशस्त कर रही है उसी मदमस्त अंदाज के लिए। यदि वियोग से हमारा साक्षात्कार हुआ है तो ब्रह्मांड ने हमें अपनों के करीब जाने का सुयोग भी दिया है। ऐसे में हमें भावनात्मक मास्क लगाने की जरूरत नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि इस बार हमें प्रतीकात्मक रूप से ही होली खेलनी होगी।
वास्तविक से आभासी तक: सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट ने भारतीय समाज में अनुकूल पैठ बनाई है। यह सत्य है कि हम उस यथार्थ की अनुभूति से परे हैं, पर मुस्कळ् राते हुए वर्चुअल (आभासी) त्योहार तो खूब मना रहे हैं। मुरादाबाद में रहने वाली नेहा जैन महिला उद्यमी हैं। वह कहती हैं कि किसी भी प्रकार की तकनीक से मै पहले सुविधाजनक नहीं थी, पर ज्यों-ज्यों उद्यम बढ़ा। हमने नई तकनीक का सहयोग लिया और वाकई एक क्लिक पर त्योहार का खालीपन वीडियो काल्स, वेब काल्स, मीटिंग एप्स और अनगिनत एप्लीकेशंस ने भर दिया।
कोरोना संक्रमण के काल में हम तमाम सावधानियों के साथ डग भर रहे हैं। यह यात्रा आगे भी जारी रहेगी, लेकिन हम सबको मास्क, सेनिटाइजर और शारीरिक दूरी जैसे अस्त्रों के साथ जीवन को रंगों के इंद्रधनुष से भरना है। इसके साथ ही झिझक से परे उस कल्पना को साकार करना है, जहां हमें अपनों से थोड़ा दूर रहकर भी रिश्तों और संबंधों को हरसंभव और मजबूत करना है।
होली शुभ हो: संवेदनाओं के बीच हौसला टूटा भी और संभला भी। कोरोना संक्रमण का कालखंड अभी समाप्त नहीं हुआ है। अपने प्रियजनों को खोकर हम फिर जीवन के मुहाने पर खड़े हैं। होली संदेश है उस प्राकृतिक शंखनाद का, जहां हम फिर तत्पर हैैं जीवंतता के लिए। बहुत टूूूटे और छूटे हैैं, पर निराशा छोड़ अपने हाथों में गुलाल ले हर उस मस्तक को तिलक लगाएं, जिसने जीवन जिया है और अपना सब कुछ समानता से बांटा है। त्योहार के मौके पर उन्मुक्त हो सस्वर कहें कि अपनी और सबकी होली शुभ हो।
इस बार होली अलग सी है
अनुभवों से भरे व्यक्तियों का यह दायित्व है कि होली पर सबको संबल और रंग दें।
कोई वंचित न रहे। मन, वाणी और कर्म से उत्सव में सबको शामिल करें।
समस्त सावधानी और निर्देशों के अनुसार ही रंग खेलें।
आभासी संदेशों के साथ सुध भी लें कि कहीं कोई एकाकी तो नहीं है।
शारीरिक दूरी और अन्य सुरक्षा उपायों के साथ समूह में रहने का प्रयास इस होली में क्रियान्वयन में अवश्य लाएं, क्योंकि आने वाला जीवन इन मानकों के साथ ही सुरक्षित हो सकेगा।
त्योहारों की मूल धारणा ने ही हमें इस संकट की घड़ी में बचाया है। यह आत्मसात कर मानसिक मजबूती बनाएं रखें और जीभर घर पर ही होली खेलें।
आने वाली शुभता को पूर्ण शुचिता के साथ स्वागत योग्य बनाएं।
नजदीकी अनाथालयों, वृद्धाश्रमों और वंचित लोगों के साथ सुरक्षात्मक उपायों के साथ कुछ समय जरूर व्यतीत करें और उनके जीवन में अपनी सामथ्र्य भर रंग भरें।
संक्रमण का दहन होगा: ज्योतिषाचार्य पं. राजकुमार दीक्षित ने बताया कि फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन होता है। इसे हम अच्छाई द्वारा बुराई पर जीत का प्रतीक मानते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस त्योहार में अग्नि, रक्षा, रंग और सहभागिता का स्वरूप पुष्ट होता है। कोरोना संक्रमण की तेज गति का चक्र यह दहन अवश्य काटेगा। इस विश्वास के साथ आम जनमानस को होली का त्योहार अवश्य मनाना चाहिए, परंतु अध्यात्म और धर्मानुसार समय विशेष की मांग के अनुरूप नियम पालन करना चाहिए। होलिका दहन के समय जिस प्रकार से पूजन और विधि का ध्यान रखना जरूरी है। उसी प्रकार से सुरक्षित रहने के लिए मास्क लगाने और शारीरिक दूरी का ध्यान रखना भी जरूरी है।
आस्था से मिलेगा संबल: समाजसेवी-साहित्यकार मनी शर्मा ने बताया कि होली रंगों का त्योहार है, लेकिन हमें कोरोना संक्रमण को भी ध्यान में रखना होगा। इससे सुरक्षित रहने के लिए जरूरी है कि हम सभी आपस में शारीरिक दूरी बनाकर रखें साथ ही अन्य सुरक्षात्मक उपायों का भी ध्यान रखें, लेकिन समय-समय पर अपने से जुड़े लोगों के हालचाल लेते रहें। इससे हमारे अपनों के बीच यह संदेश पहुंचता है कि हमें उनकी कितनी फिक्र है। दूसरी ओर कोरोना काल ने लोगों के सोचने और समझने का नजरिया भी बदला है। लोगों में अध्यात्म के प्रति रुझान बढ़ा है। आध्यात्मिक चेतना और आस्था के जरिए ही हम कोरोना संक्रमण का मुकाबला कर पाएंगे। कारण, जब हमारा मन मजबूत होगा तो हमें विभिन्न प्रकार की चिंताएं नहीं घेरेंगी। तमाम शोध-अध्ययनों से यह बात साबित हो चुकी है कि आस्था हमें विपरीत हालातों में भी विचिलत नहीं होने देती है और आस्था से हमें संबल मिलता है। अगर हम गहराई में जाकर देखें तो धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के पूरक ही हैं।