इन मंत्रों के जप से करें भगवान गणेश को प्रसन्न

सनातन शास्त्रों में भगवान गणेश की महिमा का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है। भगवान गणेश अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। उनकी कृपा से साधक के सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। इसके लिए भगवान गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। इस शुभ अवसर पर मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।

प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित होता है। इस वर्ष 9 जुलाई को आषाढ़ माह की विनायक चतुर्थी है। चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त चतुर्थी का व्रत भी रखा जाता है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही आय और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

विनायक चतुर्थी पर विशेष उपाय भी किए जाते हैं। इन उपायों को करने से साधक के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। अगर आप भी भगवान गणेश की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो विनायक चतुर्थी पर विधि-विधान से गजराज की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इन शक्तिशाली मंत्रों का जप करें।

गणेश मंत्र

  1. ॐ एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥

ॐ महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥

ॐ गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥

  1. श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा ॥
  2. गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः ।

द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः ॥

विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः ।

द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌ ॥

विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌ ।

  1. ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।
  2. ॐ श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा॥
  3. दन्ताभये चक्रवरौ दधानं, कराग्रगं स्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।

धृताब्जयालिङ्गितमाब्धि पुत्र्या-लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे॥

  1. वन्दे गजेन्द्रवदनं वामाङ्कारूढवल्लभाश्लिष्टम् ।

कुङ्कुमरागशोणं कुवलयिनीजारकोरकापीडम् ॥

विघ्नान्धकारमित्रं शङ्करपुत्रं सरोजदलनेत्रम् ।

सिन्दूरारुणगात्रं सिन्धुरवक्त्रं नमाम्यहोरात्रम् ॥

गलद्दानगण्डं मिलद्भृङ्गषण्डं,

चलच्चारुशुण्डं जगत्त्राणशौण्डम् ।

लसद्दन्तकाण्डं विपद्भङ्गचण्डं,

शिवप्रेमपिण्डं भजे वक्रतुण्डम् ॥

गणेश्वरमुपास्महे गजमुखं कृपासागरं,

सुरासुरनमस्कृतं सुरवरं कुमाराग्रजम् ।

सुपाशसृणिमोदकस्फुटितदन्तहस्तोज्ज्वलं,

शिवोद्भवमभीष्टदं श्रितततेस्सुसिद्धिप्रदम् ॥

विघ्नध्वान्तनिवारणैकतरणिर्विघ्नाटवीहव्यवाट्,

विघ्नव्यालकुलप्रमत्तगरुडो विघ्नेभपञ्चाननः ।

विघ्नोत्तुङ्गगिरिप्रभेदनपविर्विघ्नाब्धिकुंभोद्भवः,

विघ्नाघौघघनप्रचण्डपवनो विघ्नेश्वरः पातु नः ॥

  1. ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।
  2. स्वस्ति श्रीगणनायकं गजमुखं मोरेश्वरं सिद्धिदम् ॥
  3. “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं चिरचिर गणपतिवर वर देयं मम वाँछितार्थ कुरु कुरु स्वाहा ।”

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com