इंडोनेशिया के जोगजकार्ता में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सब कुछ है। बोरोबुदुर का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर, प्रमबनन का विशाल हिंदू मंदिर, समृद्ध जावा संस्कृति, मुंह में पानी लाने वाले व्यंजन और बाटिक कला- इन सभी चीजों को देखकर पर्यटकों का मन ये शहर छोड़कर जाने को नहीं होता है..हमारा विमान जैसे ही जोगजकार्ता, जिसे इंडोनेशिया के सांस्कृतिक नगरी के नाम से जाना जाता है, की ओर जा रहा था, तभी दो बड़े पर्वतों से निकलते हुए धुंए ने अचानक सभी का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। ये विशाल पर्वत हमारे विमान के समानांतर चलते दिखाई दे रहे थे और इस पर पड़ी धुंध आकाश तक पहुंचती हुई दिख रही थी। यह मनोहारी दृश्य था और जो कुछ भी हो रहा था उसकी झलक को अपने कैमरे या मोबाइल फोन में कैद करने से कोई भी अपने आप को रोक नहीं पा रहा था। अभी लोगों ने कुछ ही फोटो खींची होगी, तभी किसी ने कहा कि दूसरी तरफ भी उतने ही सुंदर दृश्य नजर आ रहे हैं।
ज्वालामुखी पर्वतों के अद्भुत नजारे
पर्वत देखने में बर्फ से ढंके हुए लग रहे थे और उसके चारों तरफ धुंध घिरी हुई थी। इस क्षेत्र में बर्फ के होने पर किसी को भी आश्चर्य हो सकता था। तभी एक सहयात्री ने समझाया कि यह ज्वालामुखी पर्वत है, जिससे हमेशा धुंआ निकलते रहता है। आगे समझाते हुए कहा कि जोगजकार्ता या जोगजा (स्थानीय लोग की भाषा में) में ही माउंट मेरापी पड़ता है, जिसे पृथ्वी का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी माना जाता है। देर शाम का समय था, जब हमारा विमान जोगजकार्ता के छोटे और सुंदर अदिसुतजिप्टो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा। दिलचस्प बात यह थी कि पूरे हवाई अड्डे पर विदेशियों की संख्या ज्यादा थी और स्थानीय लोग उनकी तुलना में कम थे। वहां पीठ पर एक बैग के साथ यात्रा करने वाले लोग भी थे और साथ ही, फैमिली ट्रिप के लिए निकले लोग भी। सभी का एक ही उद्देश्य था- जोगजकार्ता जैसे खूबसूरत शहर के बारे में जानना।
समृद्ध है यहां की संस्कृति
मध्य जावा में स्थित जोगजकार्ता अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए जाना जाता है। इस प्रांत में विशाल बौद्ध और हिंदू मंदिर हैं, जो बोरोबुदूर और प्रमबनन में हैं। इनका निर्माण आठवीं और नौंवी सदी में किया गया था। यहां पर 16वीं और 17वीं शताब्दी में शक्तिशाली माताराम वंश का शासन था, इसलिए इस वंश की छाप शहर की संस्कृति पर अब भी दिखाई देती है। यहां पर शास्त्रीय जावा ललित कला और संस्कृति जैसे बाटिक, बैले, नाटक, संगीत, कविता और कठपुतली शो का अनुभव किया जा सकता है।
सबसे दिलचस्प बात है कि शहर में अभी भी पूर्व-औपनिवेशिक सल्तनत का औपचारिक रूप से शासन है, जो कि जोकजकार्ता हदीनीक्त्रात के नाम से जाना जाता है। इंडेनेशियाई उच्च शिक्षा के लिए भी यह शहर प्रसिद्ध है। साथ ही, यह बाटिक कला का भी केंद्र है, जिसमें कपड़ों पर मोम और डाई प्रकिया का उपयोग किया जाता है। जब तक हम शेरॉटन मुस्टिका जोगजकार्ता रिसॉर्ट और स्पा पहुंचे, जो कि हवाई अड्डे से दस मिनट की दूरी पर है, अंधेरा हो चुका था। इसलिए जैसे ही हम वहां पहुंचे। वहां के स्टॉफ ने हमें रात्रि का भोजन कर लेने को कहा, क्योंकि वह जल्द खत्म होने वाला था। लेकिन खाने की किसे जल्दी थी, जब इतना सुंदर शहर हमारे घूमने के लिए सामने था।
मार्केट स्ट्रीट
शहर में हमारा पहला पड़ाव था वहां का प्रसिद्ध मार्केट स्ट्रीट या प्रमुख पर्यटक केंद्र जलान मालियोबोरो या मालियोबोरो स्ट्रीट। यह काफी बड़ा मार्केट स्ट्रीट है, जहां कपड़ों, आभूषणों, हस्तकरघा और स्ट्रीट फूड की दुकानें कतार से है। वहां काफी भीड़ भी थी। इस बाजार में प्लास्टिक की छत और दीवारों के साथ बने अस्थायी दुकानों या स्ट्रीट फूड की दुकानों से उठती हुई खुशबू से अपने को रोक पाना मुश्किल था। यहां के खाने का अपना आकर्षण है, क्योंकि उनके पास कोई फैंसी फर्नीचर नहीं थे, केवल लकड़ी के बेंच थे। सभी को अपने जूते बाहर खोलने पड़ते हैं और खाने के लिए फर्श पर बैठकर भोजन करना पड़ता है। कई दुकानों पर केकड़े, झींगे, मछली और अन्य पारंपरिक वस्तुएं परोसी जा रही थी। बाजार में फुटपाथ पर युवा संगीतकार और कलाकार गिटार या ड्रम बजाते नजर आ जाएंगे।
सुल्तान का महल
अगले दिन दर्शनीय स्थलों की सैर के लिए निकले। सबसे पहले शहर के केंद्र क्रेटॉन या सुल्तान के महल गए, जो कि मालियाबोरो से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है। यह काफी दूर में फैला महल है। सुल्तान का केवल नाम है उसके पास कोई शक्ति नहीं है, फिर भी उसके महल में सभी आधिकारिक बैठकें और समारोह आयोजित होते हैं। महल के डिजाइन का एक अनोखा पैटर्न है। इसके एक तरफ माउंट मेरापी ज्वालामुखी है और दूसरी तरफ हिंद महासागर है। उनका कहना है कि यह महल देवताओं, मानव और प्राकृतिक स्थानों के संबंध की प्राचीन मान्यता पर बनाया गया है। इस भव्य महल के मंडप और आंगन, इसकी वास्तुकला और यहां लगे पेड़ों का भी स्थानीय परंपरा के अनुसार कुछ खास महत्व है। इसमें एक संग्रहालय भी है, जिसमें वर्तमान सुल्तान के स्वर्गीय पिता से संबंधित चीजों को रखा गया है।
बोरोबुदुर मंदिर
यहां से महज 40 किलोमीटर की दूरी पर शानदार बौद्ध मंदिर, जिसे बोरोबुदुर मंदिर के नाम से जाना जाता है, वह हमारा अगला पड़ाव था। 825 ईस्वी में निर्मित, इसे दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्मारक और इंडोनेशिया का मुख्य पर्यटन स्थल माना जाता है। इस मंदिर में नौ क्रमबद्ध चबूतरे हैं, जिसमें छह वर्गाकार और तीन गोलाकार हैं और इसके ऊपर एक केंद्रीय गुंबद भी है। इसकी दीवारों के चारों ओर 2,672 रीलीफ पैनल के साथ-साथ 504 बुद्ध की प्रतिमाएं हैं। कोई भी इस ऐतिहासिक कृति की सुंदरता की सराहना करते हुए दिन बिता सकता है, लेकिन हमारे पास घूमने के लिए केवल एक शाम का समय था। इसलिए मुझे अपना समय अगले भ्रमण के लिए इंडोनेशिया के सबसे बड़े हिंदू मंदिर और यूनेस्को की विश्र्व विरासत स्थल- प्रमबनन मंदिर के लिए बचाकर रखना था।