घाटी में आतंकवाद के खात्मे के लिए लगातार ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं। वहीं आतंकी धर्मस्थलों की आड़ लेकर स्थानीय लोगों की भावनाओं से खेलने की साजिश करते हैं। इसलिए सुरक्षाबलों पर हमला करने से पहले व बाद वे धर्मस्थलों की शरण लेते हैं, ताकि जान बच जाए, अगर सुरक्षाबल कठोर कार्रवाई करें और इसमें धर्मस्थलों को नुकसान पहुंचे तो उसे धार्मिक रंग देकर लोगों को भड़काया जा सके।
कश्मीर जोन के आईजी विजय कुमार ने सोमवार को बताया कि आतंकियों ने पंपोर, सोपोर और शोपियां में मुठभेड़ के दौरान सुरक्षाबलों पर हमले के लिए बार-बार मस्जिदों का गलत इस्तेमाल किया है। 19 जून 2020 को पंपोर, 1 जुलाई 2020 को सोपोर और 9 अप्रैल 2021 को शोपियां में आतंकियों ने हमलों के लिए मस्जिद की आड़ ली। आईजी ने कहा कि मस्जिद इंतज़ामिया, नागरिकों और मीडिया को इस तरह के कृत्यों की निंदा करनी चाहिए।
ज्ञात हो कि 9 अप्रैल को शोपियां मुठभेड़ में पांच आतंकी मारे गए थे। आतंकी मस्जिद के अंदर छुपकर गोलीबारी कर रहे थे। मस्जिद को नुकसान न पहुंचे, धार्मिक भावनाएं आहत न हों इसलिए सुरक्षाबलों ने आतंकी उसके भाई और इमाम को मस्जिद के अंदर भेजा। लेकिन आतंकियों ने एक न सुनी।
आईजी ने बताया कि 19 जून 2020 को पंपोर मुठभेड़ में तीन आतंकी मारे गए थे। यहां भी आतंकी शरण लेने के लिए जामिया मस्जिद में घुस गए थे। सुरक्षाबलों ने अपनी सूझबूझ से इसे नाकाम कर दिया था। सुरक्षाबलों ने विशेष रणनीति के तहत मस्जिद को नुकसान पहुंचाए बिना आंसू गैस का प्रयोग कर आतंकियों को बाहर निकालकर ढेर कर दिया था। सुरक्षाबलों के इस ऑपरेशन की स्थानीय लोगों ने भी तारीफ की थी।
1996 में जेकेएलएफ कमांडर बशारत रजा और शब्बीर सिद्दीकी ने दो दर्जन साथियों समेत दरगाह में पनाह ली थी। उन्होंने दरगाह की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों पर हमला बोल दिया। जवाबी कार्रवाई में सभी आतंकी मारे गए। इस दौरान तीन पुलिसकर्मी भी शहीद हुए थे।
मार्च 1995 में बडगाम जिले के चरार-ए-शरीफ इलाके में स्थित सूफी संत शेख नूरूद्दीन नूरानी की दरगाह में हरकत उल अंसार और हिजबुल के आतंकियों ने पनाह ली थी। 66 दिन तक आतंकी इसी दरगाह में छिपे रहे थे। 12 मई को मुठभेड़ में नौ पाकिस्तानियों समेत 25 आतंकी मारे गए थे। 15 अक्तूबर 1993 को 40 आतंकी हजरतबल दरगाह में करीब एक महीने तक छिपे रहे। 16 नवंबर को आतंकियों ने आत्मसमर्पण कर दिया था।