आज है संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत जानें पूजा विधि और महत्व

वैशाख मास का संकष्टी गणेश चतुर्थी आज 11 अप्रैल दिन शनिवार को है। इसे विकट संकष्टी गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इसे सकट चौथ, संकष्टी चतुर्थी आदि नामों से भी जाना जाता है। चतुर्थी के दिन विघ्नहर्ता श्रीगणेश जी की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है और विधिपूर्वक व्रत किया जाता है। इस बार गणेश चतुर्थी शनिवार के दिन पड़ा है, तो पूजा के समय गणेश जी को शमी की ​पत्तियां अर्पित करें, वो अत्यंत प्रसन्न होंगे। आपके बिगड़े काम बनेंगे, कार्यों में सफलता प्राप्त होगी और सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होंगी।

विकट संकष्टी गणेश चतुर्थी मुहूर्त

वैशास मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 10 अप्रैल दिन शुक्रवार की रात 09 बजकर 31 मिनट पर हो रहा है, जो 11 अप्रैल को शाम 07 बजकर 01 मिनट तक रहेगा। ऐसे में गणेश चतुर्थी व्रत शनिवार को है।

चंद्रोदय का समय

आज चतुर्थी के दिन चंद्रमा के उदय होने का समय 11 अप्रैल की देर रात 10 बजकर 31 मिनट है।

संकष्टी चतुर्थी और विनायक चतुर्थी

आपको बता दें कि हर मास में दो बार चतुर्थी आती है, एक कृष्ण पक्ष की और दूसरी शुक्ल पक्ष की। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।

चतुर्थी व्रत का महत्व

जिस व्यक्ति पर कोई संकट हो या किसी परेशानी से घिरा हो, उसे गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिए। विघ्नहर्ता श्री गणेश जी के आशीर्वाद से सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है, दरिद्रता का नाश होता है। घर-परिवार में सुख समृद्धि का वास होता है।

गणेश चतुर्थी की पूजा विधि

चतुर्थी तिथि के प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। फिर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और हाथ में जल, अक्षत् और फूल लेकर व्रत का संकल्प करें। इसके बाद पूजा स्थल पर एक चौकी पर गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें। दिनभर उपवास करें और शाम के समय गणेश जी का षोडशोपचार पूजन करें। उनको पुष्प, अक्षत्, चंदन, धूप-दीप,गंध और शमी का पत्ता अर्पित करें। फिर उनको 21 दुर्वा चढ़ाएं और 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। ओम गणेशाय नम: या ओम गं गणपतये नमः मंत्र का जाप करें। फिर अंत में गणेश जी की आरती करें। बाद में प्रसाद ब्राह्मणों तथा परिजनों को दें।

चंद्र पूजा

अब रात्रि में आप चंद्रमा को जल से अर्ध्य दें। फिर गणेश जी का स्मरण करें तथा उनसे अपनी मनोकामना व्यक्त कर दें। अंत में ब्राह्मण के लिए ​दक्षिणा और दान का सामान अलग कर दें। उसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण कर व्रत पूर्ण करें।

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