रामदेव चौदहवीं शताब्दी में पोकरण के शासक थे। इन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों और जरूरतमंदों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया था। यही कारण है कि इनकी जयंती राजस्थान में इतने उत्साह के साथ मनाई जाती है। कई मान्यताओं के अनुसार, इन्हें भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के रूप में भी देखा जाता है और यह भी माना जाता है कि उनके पास चमत्कारी शक्तियां थीं।
रामदेव जयंती का धार्मिक महत्व
लोक मान्यताओं के अनुसार, रामदेव जी ने अपनी दिव्य शक्तियों की मदद से कई लोगों की सहायता की थी। उन्होंने सभी धर्मों के लोगों का भला किया, चाहे वह किसी भी फिर धर्म या संप्रदाय का हो। यही कारण है कि जहां हिंदू धर्म के लोक उन्हें बाबा रामदेव के रूप में पूजते हैं, वहीं मुस्लिम समाज में “रामसा पीर” के नाम से जाने जाते हैं। यह भी माना जाता है कि रामदेव जी ने कई दिव्यांग लोगों को भी ठीक किया था। कहा जाता है कि जो भी भक्त श्रद्धा भाव के साथ रामदेव जी के दरबार में जाता था, बाबा की कृपा से वह कभी खाली हाथ नहीं लौटा।
यहां स्थित है मंदिर
बाबा के चमत्कारों और उनकी जरूरतमंदों के प्रति दया भाव को देखकर लोगों में उनकी आस्था बढ़ने लगी। जिससे रामदेव जी की जयंती मनाने की शुरुआत भी हो गई। तभी से हर साल इस पर्व को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। राजस्थान में पोकरण से करीब 12 किलोमीटर दूर, रुणिचा में जिस स्थान पर बाबा ने समाधि ली थी, आज वहां एक भव्य मंदिर स्थित है, जिसका निर्माण बीकानेर के राजा गंगा सिंह ने करवाया था। यहां भक्त दूर-दूर से उनके दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
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