सनातन हिन्दू धर्म में देव उपासना, शास्त्र वचन, मांगलिक कार्य, ग्रंथ पाठ या भजन-कीर्तन के दौरान ॐ का उच्चारण करना जरूरी होता है। इसका उच्चारण कई बार किया जाता है। ॐ की ध्वनि तीन अक्षरों से मिलकर बनी है- अ, उ और म। ये मूल ध्वनियां हैं, जो हमारे चारों तरफ हर समय उच्चारित होती रहती हैं। ओम को अनहद नाद भी कहते हैं और इसे प्रणव भी कहा जाता है।
दरअसल, प्रणम नाम से जुड़े गहरे अर्थ हैं, जो अलग-अलग पुराणों में अलग तरह से बताए गए हैं। यहां हम जानते हैं शिव पुराण में बताए ॐ के प्रणव नाम से जुड़े अर्थ को-
शिव पुराण में प्रणव के अलग-अलग शाब्दिक अर्थ और भाव बताए गए हैं- ‘प्र’ यानी प्रपंच, ‘ण’ यानी नहीं और ‘व:’ यानी तुम लोगों के लिए। सार यही है कि प्रणव मंत्र सांसारिक जीवन में प्रपंच यानी कलह और दु:ख दूर कर जीवन के अहम लक्ष्य यानी मोक्ष तक पहुंचा देता है। यही कारण है ॐ को प्रणव नाम से जाना जाता है।
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दूसरे अर्थों में प्रणव को ‘प्र’ यानी यानी प्रकृति से बने संसार रूपी सागर को पार कराने वाली ‘ण’ यानी नाव बताया गया है। इसी तरह ऋषि-मुनियों की दृष्टि से ‘प्र’ अर्थात प्रकर्षेण, ‘ण’ अर्थात नयेत् और ‘व:’ अर्थात युष्मान् मोक्षम् इति वा प्रणव: बताया गया है। जिसका सरल शब्दों में मतलब है हर भक्त को शक्ति देकर जनम-मरण के बंधन से मुक्त करने वाला होने से यह प्रणव: है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार मूल मंत्र या जप तो मात्र ओम ही है। ओम के आगे या पीछे लिखे जाने वाले शब्द गोण होते हैं। ॐ ही महामंत्र और जप योग्य है।