हम सहजन की तमाम खासियतें पेश करें. इससे पहले उसके पराठे के बारे में बताते हैं. सहजन के पराठे आमतौर पर उसकी पत्तियों से बनाए जाते हैं. पत्तियां उबाल ली जाती हैं. फिर इसे आठे में गूंथ लिया जाता है. कुल लोग इन्हें उबालने की बजाए इन्हें पीसकर भी आटे में गूंथना पसंद करते हैं. फिर गूंथे आटे नमक, आजवाइन और मिर्च आदि मिला लेते हैं. अब सहजन के पराठे के लिए आटा तैयार है. स्वाद में लाजवाब और स्वास्थ्य के लिए भी उत्तम.
इन पत्तियों में एंटीऑक्सीडेंट और अन्य आवश्यक पोषक तत्व होते हैं, जो ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल लेवल कंट्रोल रखने में सहायक हैं. सहजन के पत्तों को दाल और सब्जी में मिलाकर भी खाया जाता है.
इस शोध के बारे में भी जानें
जर्नल “यूरोपीयन रिव्यु फॉर मेडिकल एंड फार्मालॉजिकल साइंस” में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, सहजन के पत्तों के रस से अल्फा ग्लुकोसिडेस और पैन्क्रीऐटिक अल्फा-एमिलेस एंजाइमों को रोकने में मदद मिलती है. ये तब बढ़ जाते हैं, जब व्यक्ति डायबिटीज से पीड़ित होता है.
सहजन के पत्ते कोलेस्ट्रॉल रोकने में सहायक हैं बल्कि ट्राइग्लिसराइड का लेवल भी कम करते हैं. इन पत्तों के फाइटोकेमिकल्स और एंटीऑक्सीडेंट होने की वजह से एथ्रोस्केलोरोसीस हाइपरटेंशन और अन्य बामारियों का जोखिम कम होता है.
सहजन का एक पराठा ऐसा भी
वैसे सहजन का एक और पराठा भी बनाया और खाया जाता है. उसमें सहजन को कूचकर उसके अंदर का पल्प (गूदा) निकाल लेते हैं. फिर इसे आटे में अच्छी तरह गूंथकर इसमें नमक, आजवाइन, जीरा आदि मिलाकर इसका पराठा बनाया जाता है. ये स्वादिष्ट भी होता है और फायदेमंद भी.
सहजन को काटकर इसका आचार बनाया जाता है. ये बंगाल में खासा लोकप्रिय है. तो कई तरह की सब्जियों, सांभर और डोसा मिक्स में इसका इस्तेमाल जमकर होता है. उसकी फलियों और फूलों की भी सब्जी बनती है. कुल मिलाकर किचन में तो सहजन ऐसी नायाब चीज है कि इसे किसी भी खाने में मिला दीजिए.
कल्पवृक्ष कहिए जनाब
सहजन को बॉटनिकल नाम मोरिंगा ओलिफेरा है. इसे सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा नामों से भी जाना जाता है. कुल लोग इसकी तुलना कल्पवृक्ष से करते हैं। शायद इसलिए क्योंकि इसके पौधे के हर हिस्से का उपयोग होता है. इसके पत्ती, फूल, फल, बीज, डाली, छाल, जड़ें, बीज सभी खाए जाते हैं. फलियों को सूखाकर तेल भी बनाया जाता है. ये फिल्टर के काम आता है तो हाथ की सफाई में भी इस्तेमाल होता है. दवाओं के लिए जड़ी-बूटियों में सहजन का प्रयोग तो प्राचीन भारत में होता रहा है. इसकी कच्ची हरी फलियों का इस्तेमाल भी काफी होता है. माना जाता है कि इसकी हरी सब्जी खाने से आप लंबे समय तक जवां रह सकते हैं.
कैसे होता है पौधा
पौधा करीब दस मीटर उंचाई वाला होता है किन्तु लोग इसे डेढ़-दो मीटर की उंचाई से हर साल काट देते हैं. इसे अगर बढने दिया जाए तो ये कई मंजिला ऊंचाई तक पहुंच सकता है.
दुनियाभर में लोकप्रिय
सहजन को एशिया के तमाम देशों के अलावा अफ्रीका में खूब साया जाता है. कंबोडिया, फिलीपींस, श्रीलंका, अफ्रीका में इसकी पत्तियां खायी जाती हैं. दुनिया के कुछ हिस्सों में इसकी फलियां खाने की परंपरा है. कई देशों में इसकी छाल, रस, पत्तियों, बीजों, तेल, और फूलों से पारंपरिक दवाएं बनायी जाती हैं. जमैका में इसके रस को नीली डाई के रूप में इस्तेमाल करते हैं. पश्चिम बंगाल के गांवों में तो इसे घर घर में उगाने की परंपरा है.
300 से ज्यादा रोगों में लाभदायक
आयुर्वेद में 300 रोगों का सहजन से उपचार बताया गया है. इसकी फली, हरी पत्तियों व सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. पेट, कफ, नेत्र, मोच, शियाटिका,गठिया आदि में ये काफी उपयोगी है. इसे
अस्सी प्रकार के दर्द को ठीक करने वाला बताया गया है.
– सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है.
– पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालता है. उलटी दस्त रोकता है.
– रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ देता है
– छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़े नष्ट होते हैं
– इसमें दूध की तुलना में चार गुना ज्यादा कैल्शियम और दोगुना प्रोटीन पाया जाता है.
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