यह कहानी है पांडव वंश के आखिरी राजा की, आइए जानते हैं किस तरह बची थी तक्षक नाग की जान..

कथा- काफी प्राचीन समय की बात है ऋषि शमीक समाधि में बैठे थे. तभी प्यास से व्याकुल राजा परीक्षित ऋषि के आश्रम पहुंचे और पानी मांगने लगे, लेकिन ऋषि नहीं उठे! इस पर परीक्षित को गुस्सा आ गया और पास पड़े एक मरे सांप को ऋषि के गले में डाल दिए. शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी जब आश्रम पहुंचे और इस नजारे को देखा तो उन्हें उसके पीछे राजा परीक्षित के बारे में पता चला. उन्होंने राजा परीक्षित को श्राप दे दिया और कहा कि आज से ठीक सातवें दिन नागराज तक्षक के काटने से तुम्हारी मौत हो जाएगी.
राजा परीक्षित सांप से अपने को दूर रखने की काफी कोशिश करने लगे, लेकिन सातवें दिन फूलों की टोकरी में कीड़े के रूप में छुपकर आए तक्षक नाग के काटने से परीक्षित की मृत्यु हो गई.अब परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने जो पांडव वंश के आखिरी राजा थे, बदला लेने का संकल्प लिया. इसके बाद जनमेजय ने सर्प मेध यज्ञ का अनुष्ठान किया! इस यज्ञ में धरती के सारे सांप एक के बाद एक हवन कुंड में आ कर गिरने लगे. लाखों सांपों की आहुति हो गई. सर्प जाति के अस्तित्व को खतरे में देखते हुए तक्षक नाग सूर्यदेव के रथ से जाकर लिपट गए. अब अगर तक्षक नाग हवन कुंड में जाते तो उनके साथ सूर्यदेव को भी हवन कुंड में जाना पड़ता. ऐसा होने से सृष्टि की गति थम जाती. उधर जनमेजय पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प जाति के विनाश पर तुले हुए थे! देवताओं के आग्रह करने पर भी जनमेजय ने यज्ञ बंद नहीं किया. आखिर में अस्तिक मुनि के हस्तक्षेप से जनमेजय ने महाविनाशक यज्ञ रोक दिया. इसके बाद ही तक्षक की जान बची.
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