मिïट्टी की सेहत का हाल जानने के लिए किसानों को अब दो दिन इंतजार की जरूरत नहीं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और मशीन लर्निंग पर काम करने वाला उपकरण ‘भू-परीक्षक’ महज दो मिनट में मिïट्टी की स्थिति बयां कर देगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. जयंत कुमार सिंह ने ये बेलनाकार उपकरण तैयार कर शोध को पेटेंट कराया है। कानपुर के कल्याणपुर ब्लाक के गांव सकसूपुरवा, बैकुंठपुर, हृदयपुर, ईश्वरीगंज और प्रतापपुर हरि में स्वाइल टेस्टिंग शुरू भी हो गई है।
अत्याधिक खाद के इस्तेमाल से बंजर हो रहे खेत
अत्यधिक रासायनिक खाद और दवाओं के इस्तेमाल से मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो जाती है, जिससे फसलों का उत्पादन प्रभावित होता है। मिट्टी में नाइट्रोजन, फासफोरस, पोटेशियम की सही मात्रा की जानकारी होना जरूरी है। ऐसे में यह उपकरण बहुत कारगर होगा। इससे मिली रिपोर्ट के आधार पर सही मात्रा में पोषक तत्व मिलाकर मिïट्टी की सेहत बेहतर रखी जा सकेगी।
ऐसे काम करता है उपकरण
मिट्टी को पानी में घोलने के बाद घोल को छानकर उपकरण में डालते हैं। इसे ब्लूटूथ से मोबाइल से जोड़ा जाता है और दो मिनट में नतीजे स्क्रीन पर आ जाते हैं। 2 मिनट में नतीजा आने से सबसे बड़ी राहत यह है कि किसानों को इंतजार नहीं करना पड़ता है।
मेंबरेन आधारित उपकरण, समूह में लेने पर फायदा
उपकरण में सोडियम, पोटेशियम और फॉरफोरस की अलग-अलग झिल्ली (मेंबरेन) होती है। एक मेंबरेन की आयु छह माह तक ही रहती है। एक मेंबरेन की कीमत करीब आठ हजार रुपये है। छह महीने में 24 हजार रुपये का खर्च आएगा। इस्तेमाल न करने पर साल भर में झिल्ली खराब हो जाती है। इसका फायदा किसान समूह में लेकर उठा सकते हैं। इससे उनकी लागत भी कम हो जाएगी और आसानी से वह मिïट्टी की देखरेख भी कर सकेंगे।
कीमत घटेगी, उम्र बढ़ेगी
आइआइटी केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर जयंत कुमार सिंह का कहना है कि इस उपकरण की कीमत फिलहाल 40 हजार रुपये है लेकिन इसका एडवांस और सस्ता वर्जन भी तैयार किया जा रहा है जिसकी कीमत 20 से 22 हजार रुपये होगी। इसके लिए मेंबरेन को हटा कर एडवांस सेंसर इस्तेमाल किए जाएंगे। इससे इसकी उम्र छह माह के बजाय चार से पांच साल हो जाएगी।
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