ऑल बीटीसी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि असम सरकार राष्ट्रीयता का सत्यापन किए बिना विदेशी होने के संदेह वाले व्यक्तियों को हिरासत में लेने और निर्वासित करने के लिए अभियान चला रही है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए कहा।
असम में विदेशियों के निर्वासन से जुड़ी याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता गौहाटी हाईकोर्ट जाएं। याचिका में आरोप लगाया गया था कि असम सरकार ने राष्ट्रीयता सत्यापन या कानूनी उपाय समाप्त होने के बिना संदिग्ध विदेशियों को हिरासत में लेने और निर्वासन के लिए अभियान शुरू किया है।
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने याचिकाकर्ता को गौहाटी हाईकोर्ट जाने के लिए कहा। पीठ ने याचिकाकर्ता ऑल बीटीसी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े से पूछा कि आप गौहाटी उच्च न्यायालय क्यों नहीं जा रहे हैं?इस पर वकील ने कहा कि यह याचिका सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्व में पारित आदेश पर आधारित है।
पीठ ने फिर कहा कि गौहाटी उच्च न्यायालय जाएं। हेगड़े ने कहा कि हम हाईकोर्ट का रुख करने के लिए याचिका वापस ले लेंगे। पीठ ने उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।
याचिका में यह कहा गया
अधिवक्ता अदील अहमद के जरिये दायर याचिका में शीर्ष अदालत के चार फरवरी के आदेश का जिक्र है। इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने असम को 63 घोषित विदेशी नागरिकों के निर्वासन की प्रक्रिया दो सप्ताह के भीतर शुरू करने का निर्देश दिया गया था। याचिका में कहा गया कि असम ने विदेशी होने के संदेह वाले व्यक्तियों को हिरासत में लेने और निर्वासित करने के लिए अभियान शुरू किया है। एक सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक को कथित तौर पर बांग्लादेश में वापस धकेल दिया गया।
याचिका में दावा किया गया कि ऐसी घटनाएं असम पुलिस और प्रशासनिक मशीनरी द्वारा अनौपचारिक पुश बैक तंत्र के माध्यम से किए गए निर्वासन के बढ़ते पैटर्न को दर्शाती हैं। इसमें किसी भी न्यायिक निगरानी या संविधान या अदालत की ओर से सुझाए गए सुरक्षा उपायों का पालन नहीं किया जा रहा है। उचित प्रक्रिया के बिना व्यक्तियों का निर्वासन संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है। उन्हें अपने निर्वासन का विरोध करने का अवसर नहीं मिलता और उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होता है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि निर्वासन निर्देशों के अंधाधुंध प्रयोग तथा उचित पहचान, सत्यापन और नोटिस तंत्र के अभाव के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जहां भारतीय नागरिकों को गलत तरीके से कैद किया जा रहा है और बिना किसी वैध आधार के विदेशी क्षेत्रों में भेजने की धमकी दी जा रही है।
याचिका में निर्देश देने की मांग की गई है कि किसी भी व्यक्ति को चार फरवरी के आदेश के अनुसार विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा पूर्व कारण बताए बिना, अपील या समीक्षा का पर्याप्त अवसर दिए बिना और विदेश मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीयता के सत्यापन के बिना निर्वासित नहीं किया जाएगा। साथ ही असम की पुश बैक नीति को रद्द करने की मांग की गई।