हिमाचल प्रदेश के हिमालयी क्षेत्रों में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से लगातार नई झीलों का बनना जारी है। बढ़ते तापमान की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इससे ऊंचाई वाले इलाकों में करीब 800 छोटी-बड़ी झीलें बन चुकी हैं। 550 से ज्यादा झीलें हिमाचल प्रदेश के लिहाज से संवेदनशील हैं। इन झीलों पर विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद का सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज लगातार अध्ययन कर रहा है।
वैज्ञानिकों की मानें तो तापमान में बढ़ोतरी की वजह से ग्लेशियरों का पिघलना पिछले कुछ समय में बढ़ा है। इसकी वजह से कृत्रिम झीलों का आकार भी बढ़ रहा है। पिछले कुछ सालों में ही सतलुज, चिनाब, रावी और ब्यास बेसिन पर 100 से अधिक नई प्राकृतिक झीलें बन गई हैं। सतलुज बेसिन पर कुल 500, चिनाब में 120, ब्यास में 100 और रावी में 50 झीलें बनी हैं। वर्ष 2014 में सतलुज बेसिन पर 391 झीलें थीं।
चूंकि इन झीलों में लगातार पानी की मात्रा बढ़ रही है, ऐसे में उन पर नजर रखना और भी जरूरी हो गया है। यही वजह है कि इन झीलों और उनके बननेे व बढ़ने में मददगार ग्लेशियरों पर निगरानी के लिए सैटेलाइट की मदद ली जाती है। प्रमुख सचिव विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केके पंत कहते हैं कि साल भर कृत्रिम झीलों और ग्लेशियरों की निगरानी की जाती है और सालाना रिपोर्ट सभी संबंधित विभागों व एजेंसियों के साथ साझा की जाती है।
चमोली में आई आपदा के बाद हिमाचल प्रदेश में भी ग्लेशियरों और कृत्रिम झील वाले जिलों में अलर्ट जारी किया गया है। मुख्य सचिव अनिल खाची ने बताया कि उन्होंने ग्लेशियर वाले जिलों के उपायुक्तों से बात कर प्रोटोकॉल का पालन करते हुए निगरानी करने के लिए कहा है। वहीं, अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्व आरडी धीमान ने बताया कि हिमस्खलन संभावित इलाकों के अलावा ग्लेशियरों के आसपास के क्षेत्रों में लोगों को सतर्कता बरतने के लिए कहा गया है। हिमकॉस्ट के ग्लेशियर मानीटरिंग सेल को भी हर गतिविधि की रिपोर्ट आपदा प्रबंधन सेल को भेजने को कहा है।